Advertisement
कृषि दर्शन

पारंपरिक हल-बैल से खेती कर रहें भाजपा नेता डॉक्टर जगजीवन खरे !!!

संजय मिश्रा

नवागढ़/बेमेतरा- छत्तीसगढ़ :- एक तरफ छत्तीसगढ़ प्रदेश में मानसून आनें के बाद सभी किसान धान की बुआई के लिए अपना ट्रेक्टर लेकर खेत में पहुंचनें लगे है, तो दूसरी तरफ पानी के बूंदा-बांदी के बीच भीगनें का परवाह न करते हुए भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष डॉक्टर जगजीवन खरे नें पारम्परिक हल बैल से खेती की बुवाई की शुरुआत की है।

डॉक्टर जगजीवन खरे नें बताया कि कृषि उपकरण ट्रैक्टर आदि के युग में भी क्षेत्र के छोटे किसान ट्रैक्टर के बजाय पारंपरिक हल-बैल के माध्यम से ही खेतों की जुताई करना बेहतर समझते है, विशेषकर 1970-80 के दशक में मवेशियों की संख्या अधिक हुआ करती थी, पारंपरिक खेती का प्रचलन भी चरम पर था, परंतु अब पशुओं में खासकर बैल की संख्या में भारी गिरावट आई है, इससे पारंपरिक खेती करनें में किसानों को भारी परेशानी हो रही है।

खेती किसानी में नई तकनीक का प्रयोग भी बढ़ गया है, फिर भी ग्राम गोपालपुर में किसान आज भी पारंपरिक खेती को अधिक तरजीह देते हैं, धान की रोपाई के लिए हल-बैल से खेती करते हुए पारंपरिक प्रचलन को कायम रखे हुए है।

हल और बैल से खेती से कई फायदे…

अब कहीं-कहीं ही किसी किसान के पास कुछ जुड़े बैल रह गए हैं, जिसके कारण अभी पशुओं के गले में घंटी की आवाज बहुत कम सुनाई पड़ती है, लेकिन कई किसान आज भी खेती में हल-बैल का प्रयोग कर रहे हैं, गांव के दूसरे किसान भी बताते हैं कि हल-बैल से खेती करनें का अलग ही आनंद है, पारंपरिक हल-बैल से जमीन की जुताई अच्छी होती है, जुताई से जमीन अनुरूप समतलीकरण होता है, और फसल लगनें के बाद सिंचाई करनें में भी परेशानी नहीं होती है, बैल से हेंगाई किए जानें से खेत अधिक समतल रहता है, और पानी का ज्यादा दिनों तक ठहराव बना रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}