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आलेख/विचार

भीलटी -साहित्य धारा में आदिवासी साहित्यिक आन्दोलन !!!

आंदोलन के माध्यम से साहित्य का निर्माण !!

नासिक-धुले- यादव माली  : 1960 के बाद मराठी वद्ग्मायिन साहित्य धारा में आदिवासी साहित्यिक आन्दोलन ने प्रबल कदम उठाना प्रारम्भ किया। आदिवासी साहित्य में काव्य विधा व्यापक रूप से लिखी गई है, लेकिन कहानियों के उतने ही संग्रह हैं जितने आदिवासी साहित्य में गिने जा सकते हैं।

इसमें सुनील गायकवाड़ की भीलटी कहानियों का संग्रह, घाटी में आम लोगों के जीवन, आदिवासी जीवन, मराठी के साहित्य का अवलोकन भीलटी ने साहित्य का अंग न बन सकने वाली संस्कृति को आत्मसात कर जनजातीय लोगों के शब्दों की मशाल जलाने का कार्य किया है।

इस संग्रह के विषय आदिवासी जीवन के इर्द-गिर्द घूमते हैं और इसका शीर्षक विचारोत्तेजक है। टित्तूर, ब्लैक ब्यूटी, अथोला, तारपा, बिजली, हुर्दा, भीलटी, गावथन, सालदार, इस संग्रह में सतमाला, पेसा जैसी 12 कहानियाँ हैं। प्रत्येक विषय अलग है और इन सभी कहानियों में कहानियों का नायक एक आदिवासी योद्धा महिला, सत्ता में एक महिला, सामान्य आंदोलन का पुरुष है।

आंदोलन के माध्यम से साहित्य का निर्माण सुनील गायकवाड़ के साहित्य की विशेषता है।  भीलटीकहानी संग्रह आदिवासी साहित्य की महत्वपूर्ण कृति होगी।

इस संकलन की प्रस्तावना सेवानिवृत्त सीईओ प्रभु राजगड़कर नागपुर ने की है। इसे डॉ संजय बोरुदे नागर का समर्थन प्राप्त है। साहित्य अक्षर प्रकाशन ने हाल ही में भीलती कथा संघ का प्रकाशन किया है।

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