ऊर्जाधानी संगठन नें एसईसीएल की दोगली नीति को उजागर करते हुए स्वीकृति देनें से किया इनकार
संजय मिश्रा
अपनें आक्रमण शैली में संगठन के अध्यक्ष कुलदीप नें कहा- हम विष का पान करें और बाहरी लोग अमृत पीए यह होनें नही देंगे
दीपका-कोरबा : छत्तीसगढ़- आज एसईसीएल की दीपका ओपनकास्ट माइन्स प्रोजेक्ट की क्षमता विस्तार को लेकर आयोजित जन सुनवाई के दौरान ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति के सदस्यों नें जमकर विरोध किया और पर्यावरण के साथ पुनर्वास नीति को मनमानें ढंग से लागू कर भूमिपुत्रों की जीवन से खिलवाड़ करनें का आरोप लगाया।
ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष नें जहाँ लिखित में अपना विरोध दर्ज कराई और जन सुनवाई पैनल के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए एसईसीएल की मनमानी और दोगली चरित्र के लिए जमकर लताड़ लगाई, उन्होंने दीपका क्षेत्र से कोयला उत्खनन और परिवहन कार्य के कारण उत्पन्न प्रदूषित वायु, ध्वनि, जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया, और इसके खिलाफ हो रहे जन आंदोलन की जानकारी दी।
हैवी ब्लास्टिंग और जल संकट के कारण जानमाल को खतरे, क्षेत्र के नदी नाले, कुआं, हैण्डपम्प के धसनें और जहरीले रसायनों को बहानें का आरोप लगाया है, उन्होंने कोयला खदान के कारण आम आदमी की आयु में कमी और गंभीर बीमारियों का जिक्र करते हुए कहा कि अब इस क्षेत्र में केवल बीमार पैदा हो रहे हैं।
कुलदीप नें एसईसीएल द्वारा पुनर्वास नीति की प्रक्रिया में मनमानी का आरोप लगाते हुए कहा कि 1988 में अपनाई गई नीति के विरुद्ध नियम बनाकर कार्य किए गए है, जमीन की जमाखोरी कर रोजगार के साथ वाजिब और नए दर से मुआवजा देनें से इनकार किया जा रहा है जिससे लोंगो को मजबूरी में आंदोलन और कानून का सहारा लेना पड़ा है।
उन्होंने प्रभावित होनें वाले परिवारों के शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार का मुद्दा उठाते हुए कहा कि पीढ़ी दर पीढ़ी अपनें जमीन में बचाकर रखे कोयला को जोर लगाकर सरकारी धौंस से जबरदस्ती लुटा गया है, लेकिन उसके एवज में हर बुनयादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है, छतीसगढ़ी और आदिवासी संस्कृति को नष्ट कर यहाँ की पूरी पर्यावरण को नष्ट करनें का काम हुआ है।
कुलदीप नें खदान बन्द होनें पर समतलीकरण कर मूल किसानों को जमीन वापस करनें का भी मुददा को भी सामनें रखा, इसी के साथ प्रबन्धन के साथ-साथ शासन एवं प्रशासन पर डीएमएफ और सीएसआर का सही उपयोग नहीं करनें का आरोप भी लगाया, उन्होंने कहा कि इस राशि को परियोजना प्रभावितों के सर्वांगीण विकास के लिए खर्च किए जानें में अक्षम रहे है या जानबूझकर अधिकार से वंचित रखा गया है।
संगठन की ओर कहा गया पहले अपनें पुरानें सभी जिम्मेदारियों और वादों को पूरा किया जाए उसके बाद ही खदान का विस्तार किया जाए।
इसमें प्रमुख रूप से रूद्र दास महंत, ललित महिलांगे, कुलदीप सिंह राठौर, बसंत कुमार कंवर, दीपक यादव, संतोष चौहान, प्रकाश कोर्राम, केशी कुमार कंवर, गणेश सिंह ऊईके, सुरेंद्र कुमार गुप्ता, भागीरथ यादव, रामाधार यादव, ब्रृज कंवर, धन कंवर, बबीता आदिले, अनसुईया राठौर, जगदीश पटेल, रामाधार यादव, सागर जायसवाल, फुलेन्द्र सिंह, दयाराम सोनी, विद्याधर दास, सीमा सोनी, निशा खन्डाईत, गीता चतोम्बर, विकास खन्डाईत, प्रताप चतोम्बर, पार्वती कोड़ा, वीरेन्चु कोड़ा सुषमा नाग, मनोज, कमला गोड़सोरा, कृष्णा, बबलू गोप, शंभू बेहरा, ज्योति बाई, बलदेव गोड़, मधु बाई, मेहतर चौहान, मंजू गोप, रजनीकांत सहीस, भारती आयकोन, हाईबुऊ गुरुवारी, अहिल्या दास, सुशांति, सुभद्रा, कैलाश, सुनीता बारजो, मंगल, शिवलाल साहू, अशोक साहू, गुरूवारीबाई, गीता, सुनीता, नेहा दास, आराधना सोनी, पिंकी लता साहू, सीमा सोनी, दयाराम, बंशी, काशीनाथ, मणिशंकर साहू, रोहित दास, किशन सोनी, चामु नाग, दीपेश सोनी, अंशू अली, रवि चंद्रा, रुधन चंद्रा, बबलू, केशव केवट, राजेश (दाऊ), मुस्तकीम सहित अनेक भू-विस्थापित जन शामिल थे।