संपादकीय : किसी नें सही कहा है कि इस्तीफ़ा मांगनें वालों को तो इस्तीफ़ा मांगनें का बहाना चाहिए।बताइए, बालासोर में रेल दुर्घटना हुई नहीं कि आ गए इस्तीफ़ा मांगनें…रेल मंत्री इस्तीफ़ा दो !
और कुछ इस्तीफ़ा-याचकों नें तो एकदम हद ही कर दी… कह रहे हैं कि नामचारे के रेलमंत्री का नहीं, असली रेलमंत्री का इस्तीफ़ा चाहिए। और असली की पहचान भी बता रहे हैं।
असली रेलमंत्री वो, जो अकेला हर ‘वंदे भारत’ को हरी झंडी दिखाता है, अकेला ही अपनें हरी झंडी दिखानें की तस्वीर खिंचाता है और अकेला ही हरी झंडी दिखानें का सब जगह गीत गाता है।
षडयंत्र साफ है… मोदी जी को पापूलरटी मेें तो हरा नहीं सकते, सो रेल दुर्घटना के नाम पर ही इस्तीफ़ा मांग लो!
चित भी इस्तीफ़ा मांगनें वाले की और पट भी इस्तीफ़ा मांगनें वाले की।
इस्तीफ़ा दे दे, तब भी कुर्सीधारी का नुकसान और ना दे, तब भी उसका ही नुकसान!
इसीलिए, मोदी जी नें कभी इस्तीफ़ा मांगनें वालों को जरा-सा भी भाव नहीं दिया।
पहले दिन से और दिल्ली के तख्त वाले पहले दिन से नहीं, गुजरात के तख्त वाले पहले दिन से, उनकी पॉलिसी एकदम क्लीयर है, इस्तीफ़ा न दूंगा और न अपनें संगवाले किसी को देनें दूंगा।
और खुद चाहे किसी संगवाले से इस्तीफ़ा ले भी लूं, पर अगर कोई दूसरा कहेगा इस्तीफ़ा लेनें को, तब तो हर्गिज नहीं लूंगा।
उल्टे मौका लगा, तो प्रमोशन दे दूंगा, पर इस्तीफ़ा हर्गिज नहीं लूंगा।
ऐसा नहीं है कि मोदी जी को किसी अकड़-वकड़ की वजह से इस्तीफ़ा लेनें-देनें से एलर्जी है, और इसका छप्पन इंची छाती से भी कुछ खास लेना-देना नहीं है, हालांकि वह भी कोई बाहर वालों को ही दिखानें के लिए नहीं है, यह तो सिद्धांत का सवाल है, मोदी जी इस्तीफ़ा-
मुक्त शासन के सिद्धांत में यकीन करते हैं।
कुछ भी हो जाए, इस्तीफ़ा नहीं देेंगे।
पब्लिक नें एक बार राज दे दिया, सो दे दिया, एक बार पब्लिक से राज करनें का कमिटमेंट कर दिया, तो कर दिया, फिर वो इस्तीफे की पब्लिक की भी मांग नहीं सुनते, फिर विरोधी तो खैर आते ही किस गिनती में हैं।
और इस इस्तीफ़ा-मुक्त शासन के पवित्र सिद्धांत का, सत्ता की किसी भूख-प्यास से कोई संबंध नहीं है, वैसे भी सत्ता तो अब रह ही नहीं गई है, उसका नाम तो बदलकर मोदी जी नें कब का सेवा कर दिया है, अब सत्ता ही सेवा है और जो सत्ता के शीर्ष पर है, वह प्रधान सेवक! सेवा करनें वालों को सेवा करनें से कोई नहीं रोक सकता है, पब्लिक चाहे तो वह भी नहीं।
देखा नहीं, कैसे पिछली बार कर्नाटक में, मध्य प्रदेश में, महाराष्ट्र में, गोवा में और भी कई जगह, पब्लिक नें मोदी जी की पार्टी का सेवा का कांट्रैक्ट रद्द कर दिया था, क्या फिर भी उन्हें पब्लिक की सेवा करनें से रोका जा सका?
अंत में आया तो मोदी ही!
वैसे भी अमृतकाल के नए इंडिया में तो अब हमारी प्राचीन परंपराओं और संस्कृति का ही पुनर्जागरण होना है।
आगे जितना जाना था, जा चुके, अब बिना पीछे मुड़े पीछे चलना है, यह भी तो मोदी जी का कमिटमेंट है।
और सिद्धांत कहो या कमिटमेंट, मोदी जी कंप्रोमाइज कभी नहीं करते हैं। फिर अब तो उनके पास सेंगोल भी है। सेंगोल यानी सेवा के नाम से ही सही, पर राज करनें का सीधे ईश्वरीय आदेश।
अब सोचने की बात है कि जब राज करनें का ईश्वरीय आदेश आ चुका, किसी पब्लिक-वब्लिक की क्या औकात है, कि ईश्वरीय आदेश में टांग अड़ाए!
इसीलिए, प्राचीन काल में जब तक इस देश में ईश्वरीय आदेश का पालन करनें वालों का राज रहा, तब तक न कभी किसी नें किसी से इस्तीफ़ा मांगा और न कभी किसी राज करनें वालेे नें इस्तीफ़ा दिया।
एक बार जिसके हाथ में सेंगोल आ गया और सेंगोल हाथ में लेकर बंदा गद्दी पर बैठ गया, तो बैठ गया।
फिर जबर्दस्ती से कोई हटाए तो हटा दे, पर राजी-राजी कोई बंदा कभी हटा हो, हमने तो नहीं सुना।
सौ बातों की एक बात ये कि इस्तीफ़ा देना हमारी परंपरा में है ही नहीं। इस्तीफ़ा देनें से, ईश्वरीय आदेश के प्रतीक सेंगोल का अनादर जो हो जाता।
मोदी जी नें राज यानी सेवा के ईश्वरीय आदेश का अनादर तो बीस साल से ज्यादा में पहले भी कभी नहीं होनें दिया, जबकि उनके पास सेंगोल भी नहीं था।
वह बेचारा तो सुनहरी छड़ी बनकर, इलाहाबाद के एक संग्रहालय में किसी अलमारी में पड़ा हुआ था।
अब, जब इलाहाबाद को प्रयागराज बनाया जा चुका है और सुनहरी छड़ी को सेंगोल, तब मोदी जी के किसी से इस्तीफ़ा ले-देकर, राज करनें के ईश्वरीय आदेश का उल्लंघन करनें की बात, कोई सोच भी कैसे सकता है!
राहुल गांधी नें अमरीका में जाकर जो यह बोला कि मोदी जी ईश्वर को भी समझा सकते हैं कि दुनिया कैसे चलानी चाहिए, वह गलत नहीं थे।
बस वह इतना जोडऩा भूल गए कि मोदी जी ईश्वर से भी झगड़ जाएंगे, तो किस के लिए ? अपनी इस मातृभूमि की सेवा सदा-सर्वदा करते
रहनें के लिए ही तो ! और जाहिर है कि भारतीय धर्म-परंपरा-संस्कृति की रक्षा करनें के लिए भी।
मोदी जी ही हैं, जो ईश्वर खुद भी कहे तब भी, सेंगोल अब किसी अपात्र के हाथ में जानें नहीं देंगे।
सेंगोल की पवित्रता की रक्षा से ज्यादा जरूरी भी कुछ और है क्या?
और इस सब में भावनाओं को घुसाया जाना सही नहीं है, माना कि बालासोर की रेल दुर्घटना बहुत बड़ी है, माना कि मरने वालों का आंकड़ा पौने तीन सौ तक पहुंच रहा है और घायलों का हजार पार।
माना कि यह तीन-तीन रेलगाडिय़ों की भिडंत का मामला है।
बेशक, सब दुखद है, बेहद दुखद है। तभी तो खुद प्रधानमंत्री नें बालासोर जाकर दुख जताया है।
लेकिन, इससे इस्तीफे की मांग करना सही नहीं हो जाता है, सच तो यह है कि जैसे इस्तीफ़ा देना हमारी प्राचीन परंपरा के खिलाफ है, वैसे ही इस्तीफ़ा मांगना भी हमारी ओरिजनल भारतीय परंपरा के खिलाफ है।
डेमोक्रेसी में जिम्मेदारी और जवाबदेही की दलील से कोई हमारी भारतीय पंरपराओं को कमजोर करने की कोशिश नहीं करे। माना कि हमारी तरह अंग्रेज़ों के पास भी सेंगोल है और डेमोक्रेसी है, पर हमारे पास तो डेमोक्रेसी की मम्मी है, हमें कोई यह समझानें की कोशिश नहीं करे कि डेमोक्रेसी में, इस्तीफ़ा भी जरूरी है।
कुछ भी हो जाए, मोदी जी इस्तीफ़ा-मुक्त भारत के अपनें लक्ष्य से टस-से-मस नहीं होनें वाले हैं।
क्या उन्होंने निहालचंद मेघवाल का इस्तीफ़ा लिया था?
अजय मिश्र टेनी का ?
बृज भूषण शरण सिंह ?
फिर, वैष्णव का ही इस्तीफ़ा कैसे ?
सेंगोल के संसद में लगाए जानें के बाद तो इस्तीफ़ा शब्द तो भूल ही जाइए, वैसे भी इस्तीफ़ा मांगना भारत विरोधी है और हिंदू विरोधी भी।
सेडीशन कानून में अगले सुधार में इसे राजद्रोह बनानें के लिए मोदी जी को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
पर इस्तीफ़ा न मांगियो कोय…!