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पश्चिम बंगाल

रेड लाइट एरिया की परछाइयों में ज़िंदगी: आसनसोल की हकीकत

समीर सिंह : प्रधान संपादक

आसनसोल : पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख औद्योगिक नगर है, जो कोयला खदानों और इस्पात कारखानों के लिए जाना जाता है। लेकिन इसी नगर में एक ऐसा इलाका भी है जो अक्सर नज़रों से ओझल रहता है—रेड लाइट एरिया। यहाँ की गलियाँ दिन के उजाले में भी अंधेरे में डूबी लगती हैं, और रात के सन्नाटे में सैकड़ों कहानियाँ सांसें लेती हैं। इस रिपोर्ट के माध्यम से हम इस क्षेत्र की वास्तविक स्थिति, यहाँ रहने वाली महिलाओं की ज़िंदगियाँ, बच्चों की हालत, सामाजिक नजरिए और सरकारी कोशिशों की पड़ताल करेंगे।


इतिहास और उत्पत्ति

आसनसोल का रेड लाइट एरिया कोई नया इलाका नहीं है। इसकी जड़ें ब्रिटिश काल में पड़ गई थीं जब मजदूरों की बस्तियाँ और रेलवे स्टेशन के आसपास वेश्यावृत्ति का व्यापार फैलना शुरू हुआ। शुरू में यह इलाका सीमित था, लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे इस धंधे का विस्तार भी होता गया।


आज की तस्वीर

आज आसनसोल का रेड लाइट एरिया लगभग 300 से अधिक परिवारों का ठिकाना है, जिनमें अधिकांश महिलाएँ वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं। इनमें से कई महिलाएँ बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा और असम के दूर-दराज़ इलाकों से आई हैं। कुछ को धोखे से यहाँ लाया गया, तो कुछ मजबूरी में खुद चलकर आईं।

जीवन की जद्दोजहद

यहाँ रहने वाली रेखा (बदला हुआ नाम) कहती हैं,

“जब मैं 15 साल की थी, तब एक जान-पहचान की महिला मुझे ‘अच्छा काम’ दिलाने के बहाने यहाँ लाई थी। पता चला, यहां से निकलना नामुमकिन है।”

रेखा की तरह यहाँ की अधिकांश महिलाएँ बालिका वधू, घरेलू हिंसा या गरीबी की शिकार हैं। उनकी जिंदगी एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसी है, जिससे बाहर निकलने के लिए न रास्ता है, न समर्थन।


मानव तस्करी का गढ़

आसनसोल का यह क्षेत्र मानव तस्करी के मामलों में भी चिन्हित किया गया है। कुछ एनजीओ और पुलिस की छापेमारी के अनुसार, यहां पर नाबालिग लड़कियों को भी जबरन इस धंधे में धकेला गया है। हाल ही में पुलिस ने एक छापे में तीन नाबालिग लड़कियों को छुड़ाया, जिन्हें झारखंड से लाकर जबरन इस व्यापार में उतारा गया था।


स्वास्थ्य और सुरक्षा का संकट

यहां रहने वाली महिलाओं के सामने स्वास्थ्य एक गंभीर समस्या है। नियमित मेडिकल जांच का अभाव, यौन रोगों की जानकारी की कमी और गर्भनिरोधक साधनों की अनुपलब्धता के कारण बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं। HIV/AIDS का खतरा यहां हमेशा बना रहता है।

डॉ. प्रिया घोष, जो एक संगठन के तहत मेडिकल चेकअप करती हैं, बताती हैं:

“महिलाएँ हमें तब बुलाती हैं जब हालत बेहद बिगड़ जाती है। शर्म, डर और भेदभाव के कारण वे डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं।”


बच्चों की हालत

रेड लाइट एरिया के बच्चों की हालत सबसे दयनीय है। इन बच्चों को अक्सर स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता। उनका बचपन हिंसा, नशा, और अराजकता के बीच बीतता है। कई बार ये बच्चे या तो अपराध की दुनिया में फंस जाते हैं या फिर वही रास्ता अपनाते हैं जिस पर उनकी माँ चली थीं।

संगठन ‘INSIGHT’ के महासचिव सरिता सिंह कहते हैं:

“बच्चों को मुख्यधारा में लाना सबसे बड़ी चुनौती है। स्कूल वाले उन्हें लेने से कतराते हैं, और मोहल्ले के बच्चे उनके साथ खेलने से मना करते हैं।”


सामाजिक भेदभाव

रेड लाइट एरिया से जुड़ी महिलाएँ और उनके बच्चे समाज में उपेक्षित रहते हैं। उन्हें अच्छे मकान किराए पर नहीं मिलते, अस्पतालों में ठीक से इलाज नहीं होता, और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना लगभग नामुमकिन होता है।

रेखा बताती हैं:

“मैंने कई बार राशन कार्ड और आधार कार्ड बनवाने की कोशिश की, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया गया। यहां की पहचान ही सबसे बड़ी समस्या है।”


पुलिस और प्रशासन की भूमिका

जहाँ एक ओर पुलिस कभी-कभी रेड लाइट एरिया में छापेमारी करती है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय महिलाओं का आरोप है कि पुलिसकर्मी खुद इस धंधे से लाभ उठाते हैं।

संगीता (बदला हुआ नाम) कहती हैं:

“कुछ पुलिस वाले मुफ्त में आते हैं और डराते हैं। अगर विरोध करें तो मारपीट और झूठे केस में फंसा देने की धमकी मिलती है।”

हालांकि, जिला प्रशासन का कहना है कि स्थिति में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।

“हमने हाल ही में पुनर्वास योजना शुरू की है जिसमें महिलाओं को सिलाई, ब्यूटी पार्लर और कंप्यूटर प्रशिक्षण दिया जाएगा।”


स्वैच्छिक संगठन की भूमिका

आसनसोल में कुछ सक्रिय स्वैच्छिक संगठन इस क्षेत्र की हालत सुधारने के लिए प्रयासरत हैं। ये संगठन महिलाओं को कानूनी सहायता, स्वास्थ्य जांच, बच्चों की शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर काम करते हैं।

  •  बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास पर केंद्रित

  •  महिलाओं के अधिकारों और स्वरोज़गार पर काम करता है

  •   HIV/AIDS जागरूकता और मेडिकल सहायता प्रदान करता है


सरकारी योजनाओं की सच्चाई

हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएँ शुरू की हैं जैसे उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, और सुकन्या समृद्धि योजना, लेकिन इनका लाभ रेड लाइट एरिया की महिलाओं तक नहीं पहुँच पा रहा है।

कारण स्पष्ट है: दस्तावेज़ों की कमी, स्थायी पता न होना, और प्रशासनिक लापरवाही।


एक नई शुरुआत की कोशिश

कुछ महिलाएँ इस गंदे दलदल से निकलकर नई ज़िंदगी शुरू करने में सफल रही हैं। जैसे कि पूजा (बदला हुआ नाम), जो अब एक छोटे बुटीक की मालकिन हैं। वह बताती हैं:

“ स्वैच्छिक संगठनकी मदद से मैंने सिलाई सीखी और धीरे-धीरे बचत करके दुकान खोली। अब मैं अपनी बेटी को स्कूल भेज रही हूं।”

ऐसी कहानियाँ उम्मीद की किरण हैं, जो साबित करती हैं कि यदि सही सहयोग मिले तो अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ा जा सकता है।


समाप्ति और सवाल

आसनसोल का रेड लाइट एरिया सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं है, यह एक ऐसा सामाजिक दस्तावेज़ है जिसमें हमारे समाज की सबसे कड़वी सच्चाइयाँ दर्ज हैं। सवाल यह है कि:

  • क्या हम इन महिलाओं को केवल वेश्यावृत्ति के चश्मे से देखना बंद कर सकते हैं?

  • क्या प्रशासन इनकी नागरिक पहचान सुनिश्चित करने में मदद करेगा?

  • क्या समाज इन्हें अपनाने के लिए तैयार है?

जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक आसनसोल की ये गलियाँ सिसकती रहेंगी।

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