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छत्तीसगढ़

*मस्तिष्क विकारों के लिए कारगर आयुर्वेदिक औषधीय हैं ब्राम्ही

ब्राह्मी की खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा-किशोर राजपूत

बेमेतरा (छत्तीसगढ़- Bureau ) : – राज्य सरकार के द्वारा किसानों को धान के बदले दूसरी फसलों की खेती करनें के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वैश्विक महामारी करोना के बाद से ही औषधीय पौधों की व्यावसायिक खेती का चलन पूरे प्रदेश में बढ़ गया, इसी कड़ी में बेमेतरा जिला क्षेत्र के नगर पंचायत नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत नें भी ब्राम्ही की खेती करना शुरू किया, ब्राम्ही जहां मस्तिष्क विकारों के लिए एक आयुर्वेदिक औषधि का काम करती है तो वहीं इसकी खेती से किसानों को भी खूब फायदा हो रहा है,
किशोर राजपूत नवागढ़ क्षेत्र के ऐसे पहले किसान है जो ब्राम्ही की खेती करते हैं, इस स्थिति में उन्हें सालाना ₹150000/- से ₹200000/- का मुनाफा भी हो रहा है, वहीं उन्होंने बताया कि ऊसर- बंजर जमीन पर भी इसकी खेती की जा सकती है,  इसे ना तो ज्यादा सिंचाई देनें की आवश्यकता है और ना ही उर्वरक देनें की आवश्यकता पड़ती है, इसका उत्पादन भी काफी अच्छा होता है, वहीं ब्राम्ही को जानवरों से भी नुकसान का खतरा कोई नहीं है।

ब्राह्मी से मस्तिष्क ही नहीं बल्कि किसानों को हो रहा फायदा…

मस्तिष्क से जुड़ी हुई बीमारियों में आयुर्वेदिक औषधि के रूप में ब्राम्ही का बड़े पैमानें पर इस्तेमाल होता है, पहले ब्राह्मी दूसरे प्रदेश के  किसानों द्वारा उगाई जाती थी लेकिन अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में नवागढ़ (बेमेतरा) के प्रगतिशील किसान किशोर राजपूत नें इसे अपनें खेतों में सफलतापूर्वक उपज कर रहे हैं।

किशोर राजपूत का कहना है कि वे पिछले चार सालों से ब्राह्मी की खेती कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि उनकी फसल जब तैयार हो जाती है तो लखनऊ, मध्य प्रदेश के नीमच और राजस्थान के व्यापारियों से उनका सीधा संपर्क है,  वे उनकी फसल को सीधे खरीद कर आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग करते हैं।

ब्राह्मी की खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा…

ब्राह्मी की खेती करनें वाले किसान किशोर राजपूत बताते हैं कि एक एकड़ में ब्राह्मी की खेती पर कुल ₹35000/- की लागत आती है, जिसमें प्रति एकड़ 40 क्विंटल फसल तैयार होती है, इस फसल की साल में दो बार कटाई होती है, वहीं इसका रेट भी अच्छा मिलता है ₹5000/- प्रति  क्विंटल का रेट उन्हें मिलता है, जिसके हिसाब से एक एकड़ में ₹165000/- का मुनाफा उनको हो जाता है, वहीं इस फसल को कुछ जानवरों से भी कोई खतरा नहीं है क्योंकि छुट्टा जानवर जहां हर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन ब्राह्मी को वह नहीं खाते हैं।

एक छत्तीसगढ़ी सब पर भारी !

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