सरना धर्म में पूजन पद्धति की परंपरा प्राचीन काल से है: राजेश लिण्डा !!!
नूतन कच्छप : सहायक ब्यूरो प्रमुख
लोहरदगा: राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा बाघा सिंगपुर लोहरदगा के सामाजिक जागरूकता सह सरना प्रार्थना समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अगुवाई पहान दिलीप उरांव, पूजार चेपो उरांव, महतो चन्द्रनाथ उरांव व संरक्षक उपाध्यक्ष आशिष उरांव, सचिव कुन्दन उरांव, कोषाध्यक्ष सुरेश उरांव, चामा उरांव, रमेश उरांव,प्रमेशवर लकड़ा,अजय उरांव, सुरेन्द्र लकड़ा, हरीश उरांव, विकास लकड़ा, सुरेश उरांव, सोमनाथ उरांव, अनिल उरांव, महेंद्र उरांव, कमलेश्वर लकड़ा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई।
कार्यक्रम की शुरुआत कलश में रखे दीप को अतिथियों के कर कमलों से प्रज्ज्वलित करके की गयी। यह कार्यक्रम बाघा सिंगपुर मैदान लोहरदगा में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत सरना धर्मगुरु राजेश लिण्डा, विशेष अतिथि नीरज मुण्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, मुख्य वक्ता केन्द्रीय महासचिव जलेश्वर उरांव, विशिष्ट अतिथि फूलकेश्वर उरांव लोहरदगा जिला धर्मगुरु राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सोमे उरांव राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, जिला परिषद सदस्य कैरो सुखदेव उरांव,बाघा पंचायत मुखिया फूलमनी,बिरसा उरांव राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा लोहरदगा शामिल हुये।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय धर्मगुरू राजेश लिण्डा ने कहा कि सरना धर्म में पूजन पद्धति की परंपरा प्राचीन काल से है, लेकिन यह कहीं भी रूढ नहीं है। इसका एक कारण समाज में धर्म के प्रति कट्टरता की भावना का लोप होना है। कोई भी सरना, लोक और परलोक के प्रतीकों में से किसी का भी पूजन कर सकता है और किसी का भी न करे तो भी वह सरना ही होता है। राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा जिला समिति राष्ट्रीय महासचिव जलेश्वर उरांव ने कहा कि आदिवासी समुदाय के मड़ई चण्डी सातों माता को दूसरे धर्म के लोग छिन रहे हैं।
आदिवासी जनजातियों के विकास और उन्नति के लिए संविधान में आरक्षण सहित अन्य सुविधाओं का प्रावधान है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन सुविधाओं का लाभ आदिवासी के स्थान पर धर्मान्तरित लोगों को मिल रहा है. धर्मान्तरित लोग जो अपनी रुढ़ियों, प्रथाओं और परंपरा-संस्कृति को त्यागकर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं. उन्होंने ने कहा कि आज जब तक आदिवासियों समुदाय सशक्त बनाने के लिए कस्टमरी लॉ, वनाधिकार सहित अन्य प्रावधान किए गए हैं लेकिन धर्मान्तरित लोग अपनी संस्कृति, आस्था और परंपराओं को त्यागकर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं. आरक्षण सहित अन्य सुविधाओं का 80 फीसदी फायदा ऐसे लोग उठा रहे हैं. इस लिए सभी को आदिवासी समुदाय एकता जागरूकता शिक्षित होकर आगे बढ़े।
कैरो जीप सदस्य सुखदेव उरांव ने कहा कि आज आदिवासी सरना समाज में बहुत सारे संगठन है, सभी का उद्देश्य आदिवासी समाज को बचाकर आगे ले जाना है। आदिवासी संगठन में अगर अहम् आ जाएगा तो समाज बिखर जाएगा। इस लिए सभी को एकता जागरूकता के साथ आगे बढ़े।
राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा जिला समिति जिलाध्यक्ष सोमदेव उरांव ने कहा कि पेसा एक्ट आदिवासी समुदाय को प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी सुरक्षित करता है. झारखंड सरकार ने इसी अधिनियम के दृष्टि में झारखंड पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) के लिए एक ड्राफ्ट जारी किया है, जो आदिवासी इलाकों की ग्राम सभाओं को मजबूती प्रदान करेंगे. 1986 में पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार करते हुए पेसा कानून की शुरुआत हुई. आसान भाषा में समझें तो इस कानून की तीन प्रमुख बाते हैं- जल, जंगल और जमीन का अधिकार है। ग्रामीण कार्यकर्ता बिंदेश्वर, संदीप,नविन, संदीप दूसरा, सूरज, विकास, सोनू, रोहित, संजय, रंथु, विनीत, सतीश, अमित, अरूण, सागर ,सुजल, उत्तम,जगनारायण, विकास, राजा, राम, रंजय, मनीष, संजीत, भीम, नितीश, आकाश, आजाद, मनोज, मुनी, धरमनिया, अनिता, चन्द्रमनी, सुमन, बिनीता, सुलेखा, प्रिया, फूलमनी, अमृता, उषा और समस्त ग्रामवासी मौजूद थे।