पाली जनपद – कागजों में तालाब और मेंड़ की मिट्टी साफ-सफाई- किया गया बंदरबांट !!!
ग्रामीणों नें की अपेक्षित जांच की मांग...!!
छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश – संजय मिश्रा- प्राचीन काल से संपूर्ण भारत के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन में आम ग्रामीण जनों के लिए पंचायतों का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जिन पंचायतों की प्रशासन को सुचारू रूप से चलानें की जिम्मेदारी खुद ग्रामवासियों को दी गई है, जिसे हम स्वशासन कहते है।
इसी स्वशासन के मुखिया को सरपंच कहा जाता है, जिसको जनता द्वारा हर पांच साल में चुनकर पंचायत में विकास कार्य और बुनियादी सुविधाएं मुहैया करानें की अहम भूमिका सौंपी जाती है, जहाँ सरपंच अपनें उत्तरदायित्व पर खरा उतरते हुए ग्राम में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आधारभूत सुविधाएं जुटानें के प्रयास और ग्राम सभा की नियमित बैठकें आयोजित करनें के साथ ही ग्रामीण विकास में जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है।
पंचायती राज अधिनियम-1992 के बाद सरपंच पद का महत्त्व और भी बढ़ गया है, केंद्र और राज्य सरकार ग्राम्य विकास की तमाम योजनाएं इन्ही पंचायतों के जरिए संचालित करती है।
आपको भी पता होगा कि वर्तमान समय मे पंचायतों में हर साल लाखों रुपए ग्राम्य निधि में आती है, अतः सरपंच और ग्राम पंचायत की भूमिका गांव के विकास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है, किन्तु कुछ सरपंच निजी विकास के लिए भ्रष्ट्राचार में लिप्त हो जाते है जिससे शासन के मंशानुसार गांव का विकास नही हो पाता।
कुछ ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ प्रदेश के पाली जनपद पंचायत अन्तर्गत ग्राम पंचायत बसीबार का सामनें आया है, जहाँ पर सरपंच नें सचिव से मिलीभगत कर तालाब और मेंड़ की मिट्टी साफ-सफाई, पचरी, नाली निर्माण के कार्य कागजों में कराकर ग्राम्य निधि से लाखों रुपए निकाल कर हजम कर डकार गए।
पुष्ट सूत्रों से प्राप्त मयदस्तावेज जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत बसीबार में स्थित वर्षों पुराना पनपिया (बड़े) तालाब, जहाँ तीन दशक पूर्व इस ग्राम के निवासी जिस तालाब के पानी का उपयोग पीने के रूप में करते थे, रख-रखाव के अभाव में धीरे-धीरे इस तालाब का पानी दूषित हो चला, अब लोग निस्तारी के रूप में फिलहाल इसका उपयोग कर रहे है, इसी तालाब के साफ-सफाई, कच्चा नाली, मेंड़ नीचे मिट्टी सफाई, पचरी निर्माण के नाम पर यहाँ के सरपंच कृपाल सिंह नें सचिव के साथ मिलकर पंचायत मद से लाखों रुपए निकाले लेकिन धरातल पर ग्रामीणों को कोई काम देख नें को नहीं मिला।
उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार पनपिया (बड़े) तालाब में पचरी निर्माण के नाम पर बाउचर तिथि 14 अप्रैल 2021 में 10 ट्रिप रेत धुलाई की राशि बीस हजार एवं गिट्टी, सीमेंट, सरिया खरीदी पर सत्तर हजार व बाउचर तिथि 22 जून 2021 में मजदूरी राशि आठ हजार पांच सौ रुपए आहरण की गई है।इसी तरह 11 जनवरी 2022 की बाउचर तिथि में अस्सी हजार तथा 22 मार्च 2022 में तेरह हजार आठ सौ छियानवे और पंद्रह हजार चौवन रुपए की राशि तालाब निर्माण की मजदूरी भुगतान के रूप में निकाली गई है।
वहीं पनपिया तालाब के नीचे नाली निर्माण एवं इसके सामाग्री के नाम पर बाउचर रिचार्ज तिथि 27 अक्टूबर 2021 को 90 हजार और 22 दिसंबर 2021 को 26 हजार की राशि मूलभूत व 15वें वित्त मद से आहरित की गई है। लेकिन सरपंच-सचिव नें ये सब काम कागजों में कराकर सरकारी धन पर डांका डालते हुए 3 लाख 63 हजार 4 सौ 50 रुपए का आपस मे बंदरबांट कर लिया।
उपलब्ध दस्तावेज में दर्शाए गए कार्यों की पुष्टि के लिए जब इस ग्राम में पहुँचे और पनपिया तालाब में नहा रहे कुछ स्थानीय ग्रामीणों से हमने पूछा कि उक्त तालाब में वर्तमान सरपंच कार्यकाल में साफ-सफाई के कार्य, पचरी-नाली निर्माण जैसे कार्य कराए गए है कि नही?
तब ग्रामीणों नें बताया कि ऐसा कोई भी कार्य जमीनी स्तर पर देखने को तो नही मिला है, और जो भी काम दिख रहा है वह तात्कालीन सरपंच सुरभवन सिंह के कार्यकाल का है, जब उन्हें कार्य व राशि आहरण के बारे में बताया गया तब वे भी कुछ पल के लिए भौचक्क रह गए और कहा कि सरपंच-सचिव मिलकर शासन की योजनाओं में बेहद गड़बड़ी कर रहे है।
उन्होंने यह भी बताया कि मनरेगा के कामों में भी सरपंच अपने रिश्तेदारों के फर्म की फर्जी बिल से खरीदी दिखाकर और मस्टररोल पर फर्जी मजदूरों की एंट्री से भी सरकारी राशि का बंदरबांट कर रहे है।पंचायत स्तर पर सभी फैसले को अमलीजामा पहनाने में सरपंच- सचिव के हस्ताक्षर अनिवार्य होते है।ऐसे में भ्रष्ट्राचार के इस पूरे खेल में दोनों के गठजोड़ को नकारा नही जा सकता, क्योंकि बिना सरपंच-सचिव हस्ताक्षर के पंचायत प्रस्ताव पूर्ण व राशि आहरण नही किया जा सकता।
सरपंच-सचिव द्वारा किए गए भ्रष्ट्राचार के और भी अनेक उदाहरण है, जिसका खुलासा खबर के माध्यम से परत दर परत किया जाएगा।पंचायत कार्यों की पारदर्शिता के लिए संचालित मॉनिटरिंग सिस्टम पूरी तरह से फेल…ऐसा नही है कि शासन स्तर पर सरपंच-सचिव को भ्रष्ट्राचार करनें की छूट दी गई हो, इसकी मॉनिटरिंग के लिए तीन सिस्टम है, पर वे पूरी तरह से फेल है।
जिससे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में जमकर लूट-खसोट चल रही है, पंचायत में होनें वाले काम की मॉनिटरिंग का पहला सिस्टम है सोशल ऑडिट… मतलब ग्राम सभा। इसमें ग्रामीणों के सामनें पंचायत अपना लेखा-जोखा रखती है, लेकिन जागरूकता की कमी से यह ग्रामसभा किसी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नही है, लोग जागरूक नही है इसलिए वे अपनी पंचायत के हिसाब-किताब में ज्यादा रुचि नही रखते। दूसरा सिस्टम है… विभाग का अपना ऑडिट और तीसरा सिस्टम है… कैग का ऑडिट।
इनमें भ्रष्ट्राचार पकड़ में तो आ जाता है, लेकिन सरकारी राशि की बंदरबांट ऊपरी लेवल तक होनें से कार्रवाई नहीं हो पाती।बहरहाल सरपंच-सचिव द्वारा कराए गए कार्यो की भौतिक सत्यापन कर भ्रष्ट्राचार मामले पर न्याय संगत कार्रवाई की अपेक्षित मांग यहां के ग्रामीणों नें जिला प्रशासन से किया है।