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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी थे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव

शहीद दिवस के रुप में काला दिन माना जाता है

नयी दिल्ली ( Editorial) : शहीद दिवस के रुप में जाना जाने वाला यह दिन यूं तो भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है । पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं।

भगत सिंह –  भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया।

अदालती आदेश के मुताबिक भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर,, रातों रात ले जाकर व्यास नदी के किनारे जला दिए गए।

शिवराम हरि राजगुरु –  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी।शिवराम हरि राजगुरु का जन्म  १९०८ में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था। ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे।

अंग्रेजों ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च को ही भगतसिंह और अन्य को फांसी दे दी.. 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में साण्डर्स हत्याकांड / लाहौर षडयंत्र कांड (ए एस पी, लाहौर), के कारण भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु,को फाँसी दी गयी थी।

27 सितम्बर 1906 को जन्मे भगत सिंह ने 1928 में क्रन्तिकारी संगठन हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संगठन की स्थापना दिल्ली के फिरोज शाह कोटला नामक स्थान में की थी।

सुखदेवपूरा नाम सुखदेव थापर था। सुखदेव थापर ने लाला लाजपत राय का बदला लिया था | इन्होने भगत सिंह को मार्ग दर्शन दिखाया था | इन्होने ही लाला लाजपत राय जी से मिलकर चंद्रशेखर आजाद जी को मिलने कि इच्छा जाहिर कि थी | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनके बलिदान को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों ‘लाहौर नेशनल कॉलेज’ के छात्र थे। दोनों एक ही वर्ष पंजाब में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

रूस के क्रांतिकारी लेनिन के समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे। इन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक “मैं नास्तिक क्यों हूँ ? लिखा था।
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित विधानसभा बम कांड को इन्होंने अपने क्रांतिकारी साथी बट्टूकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अंजाम दिया था।

इन्होंने लाहौर छात्र संघ एवम् भारत नौजवान सभा जैसे क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना की थी ।।महान क्रांतिकारी की पुण्य तिथि “शहादत दिवस ” के रूप में मनाया जाता है ।

” २३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया। ” 

 

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