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नवरात्रि विशेष, माँ नवदुर्गा के नौ रूप- पं !!!

छत्तीसगढ़:प्रतिनिधि

छत्तीसगढ़:-नवरात्रि के नौ दिनों तक माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, माँ दुर्गा के नौ रूप में पहला रूप माँ शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवीं स्कंदमाता है और देवी के छठे रूप को कात्यायनी, सातवें रूप को कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवें स्वरूप को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। माँ दुर्गा के इन सभी नामों के पीछे कोई ना कोई किस्सा जरूर सुनने को मिलता है, ऐसे में आइए जानते हैं माँ दुर्गा के नौ नाम और उनसे जुड़े कुछ रहस्य के बारे में।

माँ दुर्गा के नौ रूपों से जुड़े नौ महा रहस्य

शैलपुत्री: पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मी देवी को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती नें शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था, शैल का शाब्दिक अर्थ होता है पर्वत, इसलिए देवी का नाम शैलपुत्री रखा गया।

ब्रह्मचारिणी: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को पानें के लिए माता पार्वती नें कई वर्ष तक कठोर तपस्या की थी, इसलिए कठोर तपस्या का आचरण करनें वाली देवी को ब्रह्मचारिणी के नाम से पुकारा जानें लगा, माँ ब्रह्मचारिणी के नाम में ब्रह्म का अर्थ है तपस्या, इसलिए माँ दुर्गा के इस रूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।चंद्रघंटा: माता चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्ध चंद्र के आकार का तिलक विराजमान है, इस कारण देवी के इस स्वरूप को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।

कूष्मांडा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी के इस स्वरूप में ब्रह्मांड को उत्पन्न करनें की शक्ति व्याप्त है, साथ ही माँ नें पूरे ब्रह्मांड को उदर से अंड तक अपनें भीतर समेट रखा है, इसलिए देवी के इस रूप को कूष्मांडा नाम से जाना जाता है।स्कंदमाता: भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक दूसरा नाम स्कंद है, इसलिए कार्तिकेय यानी स्कंद की मां के रूप में देवी के इस रूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

कात्यायिनी: पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया था, तब त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों नें अपनें-अपनें तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक शक्ति को उतपन्न किया, जिसके बाद उस शक्ति नें माँ दुर्गा का रूप धारण किया और महिषासुर का वध किया, कहा जाता है त्रिदेव की शक्ति से प्रकट हुईं माता दुर्गा की पूजा सबसे पहले महर्षि कात्यायन नें की जिसकी वजह से माँ दुर्गा को कात्यायनी के नाम से भी जाना जानें लगा।

कालरात्रि: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ दुर्गा के इस रूप में हर तरह के संकट को खत्म कर देनें की शक्ति व्याप्त है, वैसे तो माता का यह स्वरूप देखनें में अत्यंत भयानक लगता है, लेकिन माँ कालरात्रि बहुत ही दयालु हैं, वह अपनें भक्तों को हमेशा शुभ फल ही देती हैं, माता के इस रूप की उपासना करनें से सभी संकटों का नाश होता है।

महागौरी: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती नें भगवान शिव को पानें के लिए इतना कठोर तप किया था कि वे काली पड़ गई थीं, महादेव देवी के इस कठिन तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया, कहा जाता है कि तब भोलेनाथ नें देवी के शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से धोया जिसकी वजह से माता के शरीर से विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर उत्सर्जित हुआ, इसलिए माता के इस स्वरूप को महागौरी के नाम से जाना जानें लगे।

सिद्धिदात्री: मान्यता है कि देवी के इस रूप की पूजा करनें से बाकी सभी देवियों की पूजा हो जाती है, माँ सिद्धिदात्री अपनें सभी भक्तों को सर्व सिद्धियां प्रदान करती हैं, इसलिए देवी के इस रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

नवदुर्गा के नौ दिन अगर समय की कमी के कारण बड़े श्लोक-मंत्र और पाठ नहीं कर सकें तो ये नौ बीज मंत्र आपके लिए हैं, इन्हें एक सौ आठ बार जप करें, देवी माँ के शुभाशीष आपको अवश्य मिलेंगे।

01. शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नम:।
02. ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
03. चन्द्रघंटा: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
04. कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।
05. स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
06. कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
07. कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
08. महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
09. सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

ऊँ प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम:।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

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