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क्राइम-भ्रष्टाचार

भारत की कड़वी सच्चाई: अंधेरे में चमकते सपने

संपादकीय

नई दिल्ली:- भारत, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है, उसकी कुछ सच्चाइयाँ अक्सर अंधेरे में छिपी रह जाती हैं। आर्थिक विकास, तकनीकी उन्नति और वैश्विक मंच पर बढ़ती पकड़ के बावजूद, कई सामाजिक समस्याएँ आज भी देश की प्रगति में बाधा बनी हुई हैं।

गरीबी और असमानता का जाल

हालांकि भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, लेकिन देश की एक बड़ी आबादी अब भी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है। ग्रामीण भारत में गरीबी का स्तर भयावह है, जहाँ लाखों लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई भारत के विकास की असली तस्वीर को उजागर करती है।

शिक्षा प्रणाली में गिरावट

भारत में शिक्षा की व्यवस्था कागजों में भले ही सशक्त दिखे, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। सरकारी स्कूलों की हालत बदतर होती जा रही है, जहाँ शिक्षकों की कमी, बुनियादी संसाधनों की अनुपलब्धता और गुणवत्ता में गिरावट जैसी समस्याएँ हैं। निजी स्कूलों की ऊँची फीस आम आदमी के लिए शिक्षा को एक महँगा सपना बना रही है।

बेरोजगारी और युवाओं का संघर्ष

देश में शिक्षा हासिल करने के बाद भी लाखों युवा बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित है, और निजी क्षेत्र में भी स्थायी रोजगार की गारंटी कम होती जा रही है। ठेके पर काम करने और कम वेतन की वजह से युवाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर बनी हुई है।

महिला सुरक्षा पर सवाल

महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भले ही महिला सशक्तिकरण की बात की जाती हो, लेकिन दुष्कर्म, घरेलू हिंसा और कार्यस्थलों पर उत्पीड़न की घटनाएँ महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाती हैं। निर्भया कांड के बाद बने कानून भी सुरक्षा की गारंटी देने में असफल साबित हो रहे हैं।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक विफलता

राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। सरकारी योजनाओं का लाभ अक्सर जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाता, और नेताओं व अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले होते रहते हैं। जनता की उम्मीदें चुनावी वादों में सिमटकर रह जाती हैं, लेकिन हकीकत में बदलाव बहुत धीमा होता है।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली

कोरोना महामारी के बाद भी भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में खास सुधार नहीं देखा गया। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की भारी कमी, निजी अस्पतालों की मनमानी फीस, और दवाओं की बढ़ती कीमतें आम नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को चुनौतीपूर्ण बना रही हैं।

क्या है समाधान?

भारत को अपनी इन कड़वी सच्चाइयों से उबरने के लिए ठोस नीति निर्माण और सख्त प्रशासनिक कार्यवाही की आवश्यकता है। शिक्षा, रोजगार, महिला सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर प्राथमिकता देकर ही देश की प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है। आम नागरिकों को भी जागरूक होकर भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी होगी।

भारत एक महान देश है, लेकिन जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक ‘विश्वगुरु’ बनने का सपना अधूरा ही रहेगा।

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