
विश्व शांति : अफगानिस्तान दशकों से संघर्ष, विदेशी हस्तक्षेप और आर्थिक निर्भरता के बोझ तले दबा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय सहायता, विशेषकर अमेरिका और पश्चिमी देशों से मिली आर्थिक मदद ने लंबे समय तक अफगान समाज और प्रशासन को चलाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अंतरराष्ट्रीय सहायता का बड़ा हिस्सा रोक दिया गया। नतीजा यह हुआ कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था अचानक ध्वस्त होने लगी और लाखों लोग गरीबी, भूख और बेरोजगारी के संकट में फंस गए।
आज सवाल यह है कि विदेशी मदद की कटौती (Aid Axe) के बाद अफगानिस्तान अपने दम पर किस प्रकार आत्मनिर्भरता (Self-reliance) की राह तलाश सकता है। क्या अफगान जनता केवल सहायता पर निर्भर रह सकती है, या फिर उन्हें अपने प्राकृतिक संसाधनों, कृषि, व्यापार और क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ना होगा?
सहायता पर निर्भरता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
-
2001 के बाद की स्थिति
-
अमेरिकी हस्तक्षेप और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की मौजूदगी के समय अफगानिस्तान को सालाना अरबों डॉलर की मदद मिलती रही।
-
शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और प्रशासनिक खर्च का बड़ा हिस्सा विदेशी फंडिंग से चलता था।
-
सरकार के राजस्व का लगभग 70% से अधिक हिस्सा बाहरी सहायता पर निर्भर था।
-
-
तालिबान का पुनः उदय (2021)
-
अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने आर्थिक सहायता रोक दी।
-
विश्व बैंक, IMF और अन्य संस्थाओं ने भी परियोजनाओं पर रोक लगा दी।
-
नतीजा यह हुआ कि अफगानिस्तान की मुद्रा अवमूल्यन, बैंकों में नकदी संकट और रोज़गार का भारी संकट पैदा हो गया।
-
-
मानवाधिकार और राजनीतिक चुनौतियाँ
-
महिलाओं की शिक्षा और कामकाज पर पाबंदी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास तोड़ा।
-
इससे निवेश और सहायता दोनों लगभग समाप्त हो गए।
-
आज की आर्थिक चुनौतियाँ
-
भूख और कुपोषण:
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान की आधी से अधिक आबादी खाद्य असुरक्षा से जूझ रही है। -
बेरोजगारी:
अंतरराष्ट्रीय फंडिंग बंद होने से निर्माण कार्य, विकास योजनाएँ और NGO प्रोजेक्ट बंद हो गए, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए। -
स्वास्थ्य व्यवस्था:
दवाओं और डॉक्टरों की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में क्लिनिक बंद पड़े हैं। -
कृषि पर दबाव:
किसानों के पास बीज, उर्वरक और सिंचाई के साधन नहीं हैं। उत्पादन घटने से ग्रामीण गरीबी और गहराई है।
आत्मनिर्भरता की संभावनाएँ
अब सवाल यह है कि अफगानिस्तान किस प्रकार बाहरी मदद पर निर्भरता घटाकर स्वावलंबी अर्थव्यवस्था बना सकता है। इसके लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. कृषि और पशुपालन
-
अफगानिस्तान की 70% से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
-
गेहूं, जौ, फलों (अनार, अंगूर, खुबानी) और पशुपालन (भेड़-बकरी, ऊन, दूध) को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकती है।
-
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अफगान सूखे मेवे और केसर की बड़ी मांग है। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का मजबूत जरिया बन सकता है।
2. खनिज संसाधन
-
अफगानिस्तान को “खनिजों का खजाना” कहा जाता है।
-
तांबा, लोहा, लिथियम और सोना जैसे प्राकृतिक संसाधन यहाँ बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं।
-
चीन और कुछ अन्य देश खनिज क्षेत्र में निवेश करने के इच्छुक हैं। यदि सही प्रबंधन और पारदर्शिता हो तो अफगानिस्तान इन संसाधनों से आत्मनिर्भर हो सकता है।
3. क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी
-
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के बीच व्यापार का केंद्र बना सकती है।
-
पाकिस्तान, ईरान, भारत, चीन और मध्य एशियाई देशों से व्यापार बढ़ाकर नए राजस्व स्रोत बनाए जा सकते हैं।
-
ट्रांजिट हब के रूप में अफगानिस्तान की भूमिका उसकी अर्थव्यवस्था को गति दे सकती है।
4. छोटे उद्योग और हस्तशिल्प
-
कालीन, कढ़ाई, और पारंपरिक हस्तशिल्प अफगानिस्तान की पहचान रहे हैं।
-
यदि इन्हें आधुनिक बाजारों से जोड़ा जाए तो स्थानीय कारीगरों को रोज़गार मिलेगा और निर्यात में वृद्धि होगी।
5. शिक्षा और मानव संसाधन विकास
-
आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी शर्त है मानव पूंजी में निवेश।
-
यदि महिलाओं और युवाओं को शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण का अवसर दिया जाए, तो वे नई अर्थव्यवस्था के निर्माता बन सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संभावनाएँ
हालाँकि पश्चिमी देशों ने सहायता कम कर दी है, लेकिन अफगानिस्तान के लिए क्षेत्रीय सहयोग की राहें खुली हुई हैं:
-
चीन: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत निवेश कर सकता है।
-
भारत: अब तक अफगानिस्तान में बांध, सड़कें और अस्पताल बनाए हैं। भविष्य में कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग कर सकता है।
-
ईरान और पाकिस्तान: व्यापारिक साझेदारी बढ़ा सकते हैं।
-
मध्य एशियाई देश: ऊर्जा और खनिज व्यापार में सहयोगी बन सकते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक सुधार की आवश्यकता
आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक पहलुओं से नहीं आएगी। इसके लिए अफगानिस्तान को आंतरिक रूप से भी सुधार करने होंगे:
-
महिला शिक्षा और भागीदारी:
महिलाओं को शिक्षा और काम से अलग रखने वाली नीतियाँ आत्मनिर्भरता में सबसे बड़ी बाधा हैं। -
पारदर्शी शासन:
भ्रष्टाचार और गुटबाज़ी को रोकना होगा। -
सुरक्षा और स्थिरता:
लगातार संघर्ष और आतंकवाद निवेशकों को दूर रखता है।
यदि ये सुधार नहीं किए जाते, तो आत्मनिर्भरता केवल एक नारा बनकर रह जाएगी।
मानवीय पहलू
सहायता कटौती का सबसे गहरा असर आम अफगान परिवारों पर पड़ा है।
-
बच्चे भूख से जूझ रहे हैं।
-
महिलाएँ घरों तक सीमित हैं।
-
युवा बेरोजगार होकर पलायन का रास्ता देख रहे हैं।
आत्मनिर्भरता का मतलब केवल आर्थिक ताकत नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसर भी है।
भविष्य की राह
अफगानिस्तान की आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है:
-
कृषि और खनिज क्षेत्र का सशक्तिकरण।
-
क्षेत्रीय व्यापार नेटवर्क का विस्तार।
-
शिक्षा और कौशल विकास को प्राथमिकता।
-
महिलाओं और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना।
-
पारदर्शी और समावेशी शासन प्रणाली।
विदेशी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता ने अफगानिस्तान को बार-बार संकट में धकेला है। अब समय आ गया है कि देश अपने संसाधनों, लोगों और क्षेत्रीय सहयोग पर भरोसा कर आत्मनिर्भरता की राह अपनाए। यह राह आसान नहीं है—इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक सुधार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।
लेकिन यदि अफगानिस्तान अपनी दिशा सही चुनता है, तो वह न केवल सहायता पर निर्भरता से बाहर निकलेगा, बल्कि एक स्थिर, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान भी बनाएगा।