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अर्थव्यवस्था

GST 2.0 — कर व्यवस्था में बड़ा बदलाव

समीर सिंह 'भारत': मुख्य संपादक

नई दिल्ली — भारत सरकार ने आज से वस्तु एवं सेवा कर (GST) की एक नई पीढ़ी की व्यवस्था “GST 2.0” लागू कर दी है। इस सुधार का उद्देश्य टैक्स स्लैबों को सरल बनाना, उपभोक्ताओं पर कर बोझ कम करना, व्यापार और उद्योगों में पारदर्शिता बढ़ाना तथा चयनित “लग्जरी एवं पाप” वस्तुओं पर उच्च कर लगाना है। यह परिवर्तन सरकार के “GST बचत उत्सव” कार्यक्रम के अंतर्गत हो रहा है।

GST 2.0 के प्रमुख बदलाव

  1. कर स्लैबों का संक्षिप्तीकरण
    पुरानी चार श्रेणियाँ (5%, 12%, 18%, 28%) खत्म कर दी गई हैं। अब दो मुख्य स्लैब होंगे — 5% और 18%। साथ ही, लग्जरी और पाप वस्तुओं (luxury & sin goods) पर 40% की दर लागू होगी।

  2. आवश्यक तथा जीवनोपयोगी वस्तुओं पर छूट
    दवाएँ, खाद्य सामग्री, दूध, पनीर, रोटी-पराठा जैसे रोटी प्रकार, पैकेज्ड स्नैक्स आदि पर टैक्स दरों में कमी हुई है — कुछ मामलों में ये पूरी तरह से छूट (0%) या सिर्फ 5% टैक्स रहेंगी।

  3. लग्जरी और “sin” वस्तुओं पर कर दरों में वृद्धि
    तंबाकू, पान मसाला, महंगी गाड़ियाँ, स्नैक / मिठाइयाँ जिन्हें “luxury” श्रेणी में रखा गया है, जैसे कुछ लग्जरी कारें, अन्य महंगे उपभोग की चीजों पर 40% कर लागू होगा।

  4. बीमा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र को राहत
    जीवन बीमा पॉलिसियाँ, स्वास्थ्य-सेवाएँ और शिक्षा सामग्री अब या तो करमुक्त होंगी या बहुत न्यून दर (5% या 0%) पर होंगी। इससे मध्यम एवं निम्न आय वर्ग के लोगों को लाभ होगा।

  5. उपभोक्ता वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर
    टीवी, एसी, वाशिंग मशीन जैसी वस्तुओं पर टैक्स दर में कमी होगी; इससे ये चीज़ें सस्ती होंगी। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इससे उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा।

  6. नवीन करों की घोषणा और क्रियान्वयन
    GST 2.0 को लागू करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अधिसूचनाएँ जारी की हैं, तथा राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना है कि जीएसटी के राज्य भाग (SGST) संबंधित अधिसूचनाएँ भी समय पर हों।

  7. उद्देश्य एवं अनुमानित प्रभाव

    • उपभोक्ताओं के लिए खरीद शक्ति (purchasing power) में सुधार।

    • घरेलू मांग (domestic demand) में वृद्धि।

    • व्यापारिक प्रक्रियाएँ सरल होंगी, टैक्स विवाद और वर्गीकरण के झंझट कम होंगे।

    • सरकार को राजस्व में कमी हो सकती है, लेकिन “luxury/sin” दरों से कुछ राजस्व की भरपाई हो सकती है।

सार्वजनिक समीक्षा (Public Review) — GST 2.0 का जनता और विशेषज्ञों का दृष्टिकोण

नीचे GST 2.0 से जुड़े कुछ सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलुओं पर जनता और विशेषज्ञों की राय दी जा रही है, जहाँ यह देखा जा रहा है कि ये बदलाव वास्तविकता में किस हद तक लाभ या कठिनाई उत्पन्न कर रहे हैं।

सकारात्मक पहलू (Pros)

  1. खरीदारी की लागत में कमी
    दैनिक उपयोग की चीज़ों जैसे आटा, दूध, पनीर, पैकेज्ड स्नैक्स आदि की कीमतों में कमी आने की उम्मीद है, जिससे घरों का बजट हल्का होगा।

  2. मध्यम एवं निम्न-आय वर्ग को राहत
    जीवन सफ़र जेवर (life insurance), स्वास्थ्य सेवाएँ और आवश्यक दवाओं पर कर कम हुए हैं, जिससे बेसिक ज़रूरतों के लिए खर्च कम होगा। इस तरह की नीति सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

  3. सरल और पारदर्शी कर प्रणाली
    कर स्लैबों की संख्या कम होने से कर व्यवस्था जटिल नहीं रहेगी, कर वर्गीकरण का भ्रामक निर्णय कम होंगे, करदाता को यह समझने में आसानी होगी कि किस वस्तु पर कितनी दर लागू है।

  4. उद्योग एवं व्यापार को प्रोत्साहन
    इलेक्ट्रॉनिक्स, आवास निर्माण सामग्री, स्वदेशी वस्तुओं पर कर दर कम कर की गई है, जिससे ये उत्पाद सस्ते होंगे और उत्पादन बढ़ेगा। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं।

  5. त्योहारी एवं उपभोग के समय राहत
    यह बदलाव त्योहारी सीज़न से कुछ पहले लागू हुआ है — इससे व्यापारियों और उपभोक्ताओं दोनों को उत्सवों के दौरान लाभ मिलेगा।

नकारात्मक पहलू एवं चुनौतियाँ (Cons & Challenges)

  1. राजस्व में कमी का जोखिम
    कर दरों में कटौती से केंद्र और राज्यों को कर संग्रह में कमी हो सकती है। यदि “luxury/sin” वस्तुओं से अतिरिक्त राजस्व पर्याप्त नहीं आया, तो déficit या वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।

  2. लागत वृद्धि की संभावनाएँ
    कुछ मामलों में वस्तुओं पर टैक्स कम होने के बावजूद लागत (input cost, परिवहन, मुनाफ़ा) अधिक हो सकती है, जिसके कारण कीमत में कमी पूरी तरह से नहीं आएगी — व्यवसायों को लागत बढ़ने से दबाव हो सकता है।

  3. उच्च दर वाली वस्तुओं से उपभोग घट सकता है
    लग्जरी और “sin” वस्तुओं पर 40% कर लगने से उनकी मांग घट सकती है; कुछ उपभोक्ता या उद्योग प्रभावित होंगे — विशेष रूप से जो इन वस्तुओं से जुड़े हैं जैसे तंबाकू उद्योग, महंगी गाड़ियों की बिक्री आदि।

  4. दवा खुदरा विक्रेताओं को नुकसान
    उदाहरण के लिए बेंगलुरु में फार्मेसी दुकानदारों को चिंता है कि पुराने स्टॉक की कीमतें बदलने पर वे मुनाफ़ा नहीं कमा पाएंगे क्योंकि उन्होंने पुराने दरों पर खरीदा था, लेकिन नया एमआरपी (MRP) नई दरों के अनुरूप होना चाहिए।

  5. राज्यों और छोटे व्यापारियों को लागू करने में समय लगना
    राज्यों को अपने SGST अधिसूचनाएँ जारी करनी होंगी; आपूर्ति श्रृंखला, बिलिंग सिस्टम, ई-इनवॉयसिंग आदि में परिवर्तनों को लागू करने में समय, लागत और प्रशिक्षण की ज़रूरत होगी। छोटे व्यापारियों के लिए यह समय एवं वित्तीय बोझ हो सकता है।

  6. उपभोक्ताओं को बदलाव का अनुभव तुरंत नहीं होगा
    हालांकि टैक्स दरें बदल गई हैं, लेकिन वस्तुओं की कीमतों में कटौती पूरी तरह से तुरंत नहीं दिखेगी क्योंकि स्टॉक के पुराने मूल्य, परिवहन एवं वितरण लागत आदि अभी भी असर डालेंगे। उपभोक्ताओं को लग सकता है कि वे अपेक्षित लाभ जल्दी नहीं पा रहे हैं।

जनता की टिप्पणी एवं उदाहरण

  • भोपाल में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बाजार जाकर देखा कि लोग “बचत उत्सव” के रूप में इस बदलाव को देख रहे हैं, त्यौहारों के समय खरीदारी करने वाले उपभोक्ता इससे खुश हैं।

  • इंदौर की नमकीन एवं मिठाई उद्योग में देखा गया है कि कर दरों में कमी से कीमतों में प्रति किलो 20–30 रुपये तक की बचत हुई है, जिससे बिक्री बढ़ने की उम्मीद है।

  • वाहन उद्योग: जैसाकि Maruti Suzuki और Citroën जैसे कंपनियों ने कुछ मॉडलों की कीमतों में कमी की है ताकि उपभोक्ताओं को नई दरों का लाभ मिल सके।

राज्यों पर असर (Impact on States)

  1. राजस्व संग्रह में असमानता

    • चूँकि आवश्यक वस्तुओं पर कर दरें घटाई गई हैं, राज्यों का हिस्सा (SGST) घट सकता है।

    • जिन राज्यों की आय “पाप व लग्जरी वस्तुओं” पर ज्यादा निर्भर है (जैसे महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली), उन्हें फायदा हो सकता है।

    • कृषि प्रधान राज्यों (बिहार, यूपी, एमपी) को राजस्व में कमी का सामना करना पड़ सकता है।

  2. राज्यों की वित्तीय योजना पर असर

    • केंद्र ने भरोसा दिया है कि 40% “luxury/sin” स्लैब से होने वाली कमाई से घाटे की भरपाई की जाएगी।

    • फिर भी राज्यों को अपनी बजट योजनाएँ और कल्याणकारी योजनाएँ नए राजस्व आंकड़ों के आधार पर समायोजित करनी होंगी।

  3. उपभोक्ता-राज्य संबंध

    • उपभोक्ता को कम कीमतों से राहत मिलेगी, जिससे राज्यों की राजनीतिक लोकप्रियता बढ़ सकती है।

    • जैसे, मध्य प्रदेश और गुजरात ने तुरंत “GST बचत उत्सव” का प्रचार शुरू किया है ताकि जनता को फायदा दिख सके।

MSMEs और छोटे व्यापारियों पर असर

  1. सकारात्मक पहलू

    • कम टैक्स दरें = अधिक बिक्री: दैनिक उपभोग की वस्तुएँ सस्ती होने से MSME स्तर पर बिक्री बढ़ेगी।

    • क्लासिफिकेशन का झंझट खत्म: अब दो ही मुख्य स्लैब (5% और 18%) हैं, जिससे छोटे व्यापारियों को टैक्स दर समझने और लागू करने में आसानी होगी।

    • ई-इनवॉयसिंग और बिलिंग सरल: कम स्लैब का मतलब अकाउंटिंग और बुक-कीपिंग में कम परेशानी।

  2. नकारात्मक पहलू

    • स्टॉक का नुकसान: पुराने दरों पर खरीदे गए माल को नई कीमत पर बेचना होगा, जिससे खुदरा विक्रेताओं को घाटा हो सकता है (खासकर दवा और किराना व्यापारियों को)।

    • तकनीकी चुनौतियाँ: छोटे व्यापारी, खासकर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में, नए GST नियमों को समझने में समय लेंगे।

    • कैश फ्लो पर असर: यदि इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की प्रक्रिया जटिल रही, तो छोटे व्यापारियों को पूँजी फँसने की समस्या बनी रह सकती है।

  3. MSME की उम्मीदें

    • यदि सरकार GST रिटर्न फाइलिंग को और आसान बनाती है और MSMEs को ट्रांजिशन अवधि देती है, तो वे लाभान्वित होंगे।

    • उद्योग संगठन चाहते हैं कि छोटे कारोबारियों के लिए टर्नओवर लिमिट बढ़ाई जाए ताकि वे कंपोजिशन स्कीम का लाभ उठा सकें।

GST 2.0 एक बड़े आर्थिक सुधार की दिशा में कदम है, जिसका लक्ष्य कर व्यवस्था को सरल बनाना, उपभोक्ताओं को राहत देना, तथा व्यापार एवं उद्योगों में सुधार लाना है। यदि सभी हितधारक — केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, उद्योग और उपभोक्ता — मिलकर इसे सही ढंग से लागू करें, तो संभव है कि यह सुधार देश की आर्थिक वृद्धि (GDP growth), कर राजस्व संतुलन और सामाजिक न्याय दोनों के दृष्टिकोण से सफल हो।

लेकिन ध्यान देने योग्य है कि केवल नीति घोषणाएँ पर्याप्त नहीं; वास्तविकता में कीमतों में कटौती, लाभों का प्रसार, छोटे व्यापारियों की समस्या, और राजस्व घाटे की भरपाई आदि मुद्दे अहम हैं।

राज्यों को इस सुधार से राजस्व संतुलन की चुनौती झेलनी होगी, लेकिन उपभोक्ता संतुष्टि और घरेलू मांग बढ़ने से उन्हें अप्रत्यक्ष फायदा मिलेगा।
MSMEs के लिए यह सुधार सरल कर ढाँचे की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन उन्हें अल्पकालिक कठिनाइयों (स्टॉक, कैश फ्लो, तकनीकी अनुकूलन) का सामना करना पड़ सकता है।

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