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अंतर्राष्ट्रीय

बलूचिस्तान में बढ़ता तनाव: पाकिस्तान, भारत और चीन की भूमिका पर नजर

समीर कुमार सिंह : प्रधान संपादक

बलूचिस्तान में हाल के वर्षों में जारी संघर्ष ने इस क्षेत्र की रणनीतिक और राजनीतिक स्थिति को और जटिल बना दिया है। बलूचिस्तान में सक्रिय विद्रोही समूहों और पाकिस्तान की सेना के बीच लगातार टकराव जारी है, जिससे क्षेत्र की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं।

बलूचिस्तान का क्षेत्र प्राचीन काल से ही रणनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। यह क्षेत्र दक्षिण पश्चिम एशिया में फैला हुआ है, जो आज मुख्य रूप से पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में बंटा हुआ है। बलूचिस्तान के निवासी बलूच जनजाति से संबंध रखते हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट भाषा और संस्कृति है।

इतिहास में बलूचिस्तान कई बार विदेशी साम्राज्यों के नियंत्रण में रहा, जिनमें फारसी साम्राज्य, मोगल साम्राज्य और बाद में ब्रिटिश राज शामिल हैं। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश राज ने इस क्षेत्र को अपनी सुरक्षा रणनीति के तहत नियंत्रित किया।

1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद बलूचिस्तान का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में शामिल हो गया। बलूच जनजातियों ने अक्सर अपनी स्वतंत्रता और स्वशासन की मांग की, जिसे पाकिस्तान सरकार ने दबाने का प्रयास किया। इसके कारण क्षेत्र में विद्रोह और संघर्ष लगातार बने रहे।

पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग करने वाले समूहों को दबाने के लिए कई सैन्य अभियान चला रही है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ से ईरान से आने वाला सस्ता और अवैध तेल गुजरता है, जो देश की अर्थव्यवस्था और आतंकी गतिविधियों का एक अहम स्रोत है।

भारत ने अपनी सैन्य तैयारियों को 2014 के बाद से मजबूत किया है और अपनी रणनीति के तहत पाकिस्तान को कई मोर्चों पर घेरा हुआ है। बलूचिस्तान में विद्रोह को लेकर भारत की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है, जो पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर रही है।

पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) की तुलना में बलूचिस्तान पर ज्यादा सक्रिय अभियान चलाए जा रहे हैं। पाकिस्तान की सेना कई इलाकों में पीछे हट रही है और विद्रोही समूहों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया है।

चीन के लिए ग्वादर बंदरगाह और बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधन विशेष महत्व रखते हैं। चीन की परियोजनाएँ इस क्षेत्र में उसके आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से संचालित हो रही हैं। हाल के समय में चीन की तेल और गैस पाइपलाइन पर हमलों ने चीन की चिंता बढ़ा दी है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान के संघर्ष को लेकर भी ध्यान बढ़ा है। बलूचिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन को वैश्विक मान्यता मिलने की संभावनाएँ उभर रही हैं, जो क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं।

भारत ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर अपनी वैश्विक स्थिति मजबूत की है, जिससे वह इस क्षेत्र में अपनी रणनीति को और प्रभावी बना रहा है।

सैन्य विश्लेषकों के अनुसार, भारत ने अपनी हवाई रक्षा प्रणाली को अत्यंत प्रभावी बनाया है, जिससे चीन के संभावित हमलों को रोकने में सफलता मिली है। इस रणनीति के तहत भारत ने पाकिस्तान और चीन दोनों को सैन्य दबाव में रखा है।

बलूचिस्तान संघर्ष का भविष्य इस क्षेत्र की स्थिरता, आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संतुलन पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

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