
मुंबई:- महाराष्ट्र सरकार ने शनिवार को अपनी नई भाषा नीति संबंधी प्रस्ताव को रद्द कर दिया है, जिसे लेकर विपक्ष और मराठी संगठनों ने हिंदी थोपने का आरोप लगाया था। यह निर्णय व्यापक विरोध और आलोचना के बाद लिया गया, जिसमें भाषा संरक्षण की मांग प्रमुख रही।
राज्य सरकार ने बीते सप्ताह एक प्रस्ताव जारी किया था जिसमें स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस, मनसे और विभिन्न मराठी सांस्कृतिक संगठनों ने इसका तीखा विरोध किया।
प्रस्ताव में सुझाव दिया गया था कि प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को “संपर्क भाषा” के रूप में बढ़ावा दिया जाए और सरकारी संवादों में हिंदी का अधिक प्रयोग हो। सरकार का तर्क था कि यह कदम केंद्र सरकार की “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” नीति के अनुरूप था।
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मराठी महाराष्ट्र की आत्मा है। कोई भी नीति जो मराठी के अस्तित्व को चुनौती देती है, उसे जनता स्वीकार नहीं करेगी।”
राज ठाकरे ने भी इस प्रस्ताव को “हिंदी थोपने की साजिश” बताया और चेतावनी दी कि अगर मराठी को दरकिनार किया गया, तो राज्यव्यापी आंदोलन शुरू होगा।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “सरकार किसी भी भाषा को थोपना नहीं चाहती। हमने जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव रद्द करने का निर्णय लिया है। मराठी हमारी प्राथमिकता थी, है और रहेगी।”
इस फैसले को मराठी भाषा प्रेमियों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, यह प्रकरण एक बार फिर भाषा के सवाल पर केंद्र और राज्यों के बीच खींचतान को उजागर करता है।