Advertisement
देश

भारत के सामाजिक क्षेत्र को सरकार और कॉर्पोरेट सेक्टर की ओर से अधिक समर्थन की आवश्यकता

संपादकीय

मुंबई- भारत :  सेंटर फॉर एशियन फिलैंथ्रोपी एंड सोसाइटी (सीएपीएस), गाइडस्टार इंडिया और सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ फिलैंथ्रोपी (सीएपी) ने डूइंग गुड इंडेक्स 2024  की रिपोर्ट में भारत के प्रदर्शन को प्रस्तुत करने के लिए सहयोग किया। इस द्विवार्षिक अध्ययन में उन नीतियों और प्रोत्साहन करने वाली योजना पर प्रकाश डाला गया है जो परोपकारी दान को अधिकतम कर सकते हैं। तथा एक संपन्न और प्रभावी सामाजिक क्षेत्र को बढ़ावा दे सकते हैं। 2024 में, भारत ने ‘डूइंग ओके’ क्लस्टर में अपनी स्थिति बनाए रखी, जो 2018 से अपरिवर्तित है। इससे यह पता चलता है के भारत में अपने सामाजिक क्षेत्र को और अधिक विकसित करने के अवसर है, तथा क्षमता  भी है।

सीएपीएस की सीईओ और संस्थापक डॉ. रूथ शापिरो ने कहा, “सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं पर विश्वास की बहुत कमी है एवं यह और भी गंभीर होती जा रही है।” “वास्तव में, 44% संस्थाओं का कहना है कि समाज उन पर भरोसा करता है, यह आंकड़ा 2022 की तुलना में काफी कम है, क्योंकि तब 55% संस्थाओं ने ऐसा महसूस किया था। इसके अतिरिक्त, केवल 26% संस्थाओं का कहना है कि सरकार उन पर भरोसा करती है। जिससे हमें तेजी से सख्त होते नियम समझ में आते है। हमें सामाजिक  संस्थाओं पर विश्वास कायम करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।”

गाइडस्टार इंडिया की संस्थापक पुष्पा अमन सिंह ने कहा, “भारत में संपत्ति बढ़ रही है, और उत्साहजनक बात यह है कि हम निजी परोपकार – विशेष रूप से पारिवारिक परोपकार, व्यक्तिगत दान  और सीएसआर – को भी इसके साथ-साथ बढ़ते हुए देख रहे हैं।” ” भारत कि सामाजिक समस्याओं से निपटने कि मदद करने की क्षमता पारिवारिक परोपकार में है।साथ ही साथसामाजिक क्षेत्र सक्षम नियमो के माध्यम से सरकार की ओर से निरंतर समर्थन देखना चाहता है। सोशल स्टॉक एक्सचेंज पारिवारिक और निजी परोपकार को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाया गया एक अच्छा कदम है, लेकिन इसे निरंतर बढ़ावा देने की आवश्यकता है।”

सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ फिलैंथ्रोपी (सीएपी) के सीईओ नोशिर दादरावाला ने कहा, “भारत के सामाजिक क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले नियमों में पिछले कुछ वर्षों में कई बदलाव हुए हैं, जिनमें आयकर व्यवस्था (इन्कम टैक्स) में बदलाव भी शामिल है, जिससे अनुदान देने वाली संस्थाओं के लिए उप-अनुदान (सब-ग्रांटिंग) देना कठिन हो गया है।” “भारत में सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं के लिए, बदलते नियामक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठाना आसान नहीं है।”

डूइंग गुड इंडेक्स 2024 में भारत का प्रदर्शन

1. सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं  की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है

  • भारत में 69% संस्थाओं  ने बताया कि पिछले 12 महीनों में उनके काम से प्राप्त लाभार्थियों की संख्या और उनकी सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई है। साथ ही 76% ने अपनी सेवाओं और  उत्पादों की मांग में वृद्धि की बात कही है।
  • भारत में सामाजिक क्षेत्र के 76% संस्थाए अपने संस्थाके भविष्य के प्रति आशावादी हैं, तथा 69% संस्थाए समग्र रूप से सामाजिक क्षेत्र के प्रति आशावादी हैं।

2. एशिया में सामाजिक क्षेत्र द्वारा डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ रहा हैलेकिन कुछ संगठनों को और अधिक समर्थन की आवश्यकता है

  • भारत में सामाजिक क्षेत्र  कि संस्थाए तेजी से डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रही हैं। 81% संस्थाए अपने काम के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करती  हैं, तथा 99%  संस्थाए अगले दो वर्षों में डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाने का इरादा रखती  हैं।
  • हालांकि भारत में 89% संस्थाओं के पास इंटरनेट की पर्याप्त पहुंच है (जबकि एशियाई संस्थाओं  का औसत 84%)। केवल 52% संस्थाओं  ने अपने कर्मचारियों के लिए कंप्यूटर और टैबलेट तक पर्याप्त होने की बात कही है।
  • सामाजिक क्षेत्र किसंस्थाए डिजिटल खतरों से सुरक्षित महसूस नहीं करती  हैं। भारत में सर्वेक्षण किये गए  संस्थाओं में से केवल 23% के पास साइबर सुरक्षा योजना है, तथा केवल 21% ने साइबर हमलों को रोकने में मदद के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया है।

3. सरकार सामाजिक क्षेत्र के नियमनीतियांकानून पर मिश्रित संदेश भेज रही है

  • भारत में सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं  के लिए पंजीकरण प्रक्रिया में दो मंजूरियों की आवश्यकता होती है तथा इसमें लगभग 125 दिन लगते हैं, साथ ही एशियाई देशों में यह औसत तीन मंजूरियों तथा 123 दिनों का है।
  • हालांकि, सामाजिक क्षेत्र से संबंधित कानूनों को समझना आसान नहीं है, भारत में 67% संस्थाओं  को यह कठिन लगता है, जबकि एशियाई देशों में यह औसत 55% है।
  • सकारात्मक बात यह है कि भारत में सामाजिक क्षेत्र के 72% संस्थाओं का मानना है कि सामाजिक क्षेत्र के कानूनों का सामान्यतः पालन किया जाता है, जो एशियाई औसत 63% है।

4. सामाजिक क्षेत्र को दिया जाने वाला फंडिंग अधिकांशतः अपरिवर्तित रहा है

  • घरेलू फंडिंग स्रोतों – व्यक्तियों, अनुदान देने वाली संस्थाओं और कम्पनियों – से प्राप्त फंडिंग अब भी वित्तपोषण का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है, जो भारतीय संस्थाओं  के बजट में आनुपातिक रूप से 48% है, जबकि एशिया में यह औसत 42% है। फिर भी, भारत में अधिकांश सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं  (80%) का मानना है कि घरेलू  फंडिंग कम है।
  • भारत का विदेशी अनुदान कानून (एफसीआरए) विदेशी धन प्राप्त करने वाले सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं  पर महत्वपूर्ण दबाव बना रहा है। विदेशी फंडिंग  प्राप्त करने के लिए सहमति प्राप्त करने में औसतन दो वर्ष का समय लगता है। तथा अधिक जांच के कारण आवेदनों को स्वीकृत करना अधिक कठिन हो जाता है।

5. कम्पनियां सामाजिक क्षेत्र  में योगदान कर रही  हैं, लेकिन अभी और काम करने की आवश्यकता है

  • भारत में 55% संस्थाओं को कॉर्पोरेट फंडिंग प्राप्त होती है, जो एशियाई औसत के बराबर है। कॉर्पोरेट फंडिंग एक संस्था के बजट का 23% का हिस्सा है, जो कि 2022 में 16% था ।
  • भारत में सामाजिक क्षेत्र के 67% संस्थाओं कॉर्पोरेट वॉलंटियर के साथ काम करती  हैं, जो एशिया देशों में यह औसत 63% है।
  • भारत अपनी प्रगतिशील सीएसआर नियम के लिए प्रसिद्ध है। योग्य कम्पनियों को कर-पूर्व लाभ का 2% सीएसआर, सामाजिक कामो के लिए  देना होगा। परिणामस्वरूप सामाजिक कल्याण हेतु प्रदान किये जा रहे कॉर्पोरेट फंडिंग में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

डूइंग गुड इंडेक्स 2024

डूइंग गुड इंडेक्स  उस विनियामक और सामाजिक वातावरण का अध्ययन करता है जिसमें निजी पूंजी को एशिया में अच्छे कार्यों की ओर निर्देशित किया जाता है। अब अपने चौथे संस्करण में, यह सूचकांक  उन नीतियों और प्रोत्साहनों की पहचान करता है जो सामाजिक क्षेत्र में निजी पूंजी को आकर्षित कर सकते हैं और इस बात पर विचार करता है कि हितधारक कैसे अधिक मजबूत, अधिक भरोसेमंद संबंध बना सकते हैं।

यह नीति निर्माताओं, परोपकारियों, शिक्षाविदों और गैर-लाभकारी नेताओं के लिए एक साक्ष्य-आधारित संसाधन है, जो परोपकारी दान को बढ़ाने और उसमें वृद्धि करने के लिए गहन अंतर्दृष्टि और सर्वोत्तम प्रथाओं की पेशकश करता है।

डूइंग गुड इंडेक्स 2024 में 17 अर्थव्यवस्थाओं (बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया, मलेशिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपींस, सिंगापुर, श्रीलंका, चीनी ताइपे, थाईलैंड और वियतनाम) के 2,183 सामाजिक क्षेत्र के संगठनों और 140 विशेषज्ञों का सर्वेक्षण किया गया । रिपोर्ट के इस संस्करण में एशिया के सामाजिक क्षेत्र पर डिजिटल प्रौद्योगिकी के प्रभाव के बारे में एक विशेष विषयगत खंड भी शामिल है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}