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श्रद्धांजलि

दशरथ माँझी : “माउंटेन मैन” धनबाद की कोयले की खानों में काम किया

एस के सिंह : प्रधान संपादक

श्रद्धांजलि : दशरथ मांझी, जिन्हें “माउंटेन मैन” के नाम से जाना जाता है, का जीवन और उनकी उपलब्धियाँ प्रेरणादायक कहानियों में से एक हैं। बिहार के गया जिले के एक छोटे से गाँव गहलौर के निवासी दशरथ मांझी ने अपने दृढ़ संकल्प, अदम्य इच्छाशक्ति, और अथक परिश्रम के बल पर एक ऐसा काम कर दिखाया, जिसे असंभव माना जाता था। उनके जीवन की कहानी न केवल उनके अद्वितीय संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि जब मनुष्य ठान लेता है, तो कुछ भी असंभव नहीं होता।

प्रारंभिक जीवन और चुनौतियाँ

दशरथ मांझी का जन्म 1934 में गया जिले के गहलौर गाँव में हुआ था। उनका परिवार अत्यंत गरीब था और दशरथ को बचपन से ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। गरीबी के कारण उन्होंने कभी स्कूल का मुँह नहीं देखा और छोटे उम्र में ही उन्हें अपने परिवार की सहायता के लिए मजदूरी करनी पड़ी। दशरथ माँझी काफी कम उम्र में अपने घर से भाग गए और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। लेकिन उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव तब आया, जब उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी एक दुर्घटना का शिकार हो गईं।

गहलौर गाँव में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव था और निकटतम अस्पताल तक पहुँचने के लिए एक बड़ा पहाड़ पार करना पड़ता था। एक दिन दशरथ मांझी की पत्नी बीमार हो गईं और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। लेकिन पहाड़ के कारण रास्ता बेहद लंबा और कठिन था, जिससे समय पर अस्पताल पहुँच पाना संभव नहीं हो पाया। इसी कारण से उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। इस घटना ने दशरथ मांझी के जीवन को बदल दिया और उन्होंने उस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने का निर्णय लिया, जिसने उनकी पत्नी की जान ली थी।

पहाड़ काटने का संकल्प

1960 के दशक में दशरथ मांझी ने अकेले ही पहाड़ काटने का बीड़ा उठाया। बिना किसी सरकारी सहायता के, बिना किसी विशेष उपकरण के, केवल एक हथौड़ा और छेनी की मदद से उन्होंने काम शुरू किया। उनके पास न तो कोई विशेष प्रशिक्षण था और न ही कोई संसाधन, लेकिन उनके पास जो था वह था एक मजबूत इरादा और अपार धैर्य।

शुरुआत में गाँव के लोगों ने उन्हें पागल समझा और उनका मजाक उड़ाया। लेकिन दशरथ मांझी ने किसी की परवाह नहीं की और अपने काम में जुटे रहे। उनकी इस कोशिश को लगभग 22 वर्षों का लंबा समय लग गया, लेकिन आखिरकार उन्होंने 360 फुट लंबा, 30 फुट चौड़ा, और 25 फुट ऊँचा पहाड़ काटकर एक रास्ता बना दिया। इस रास्ते ने गहलौर गाँव और उसके आसपास के अन्य गाँवों को नजदीकी शहरों और अस्पतालों से जोड़ दिया।

संघर्ष और सफलता

दशरथ मांझी का यह संघर्ष आसान नहीं था। जब वह पहाड़ काटने का काम शुरू कर रहे थे, तब उन्हें अपने परिवार का भी समर्थन नहीं मिला। उनका परिवार और समाज उनके इस प्रयास को पागलपन समझता था। उनकी आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब थी, और उन्हें अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना था। कई बार उन्हें भूखा रहना पड़ता था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी इस दृढ़ता ने अंततः उन्हें सफलता दिलाई।

दशरथ मांझी की यह उपलब्धि समाज के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा बनी। उन्होंने साबित कर दिया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा मनुष्य को नहीं रोक सकती। उनके इस असाधारण कार्य के कारण उन्हें “माउंटेन मैन” के नाम से प्रसिद्धि मिली।

समाज और सरकार की प्रतिक्रिया

जब दशरथ मांझी का काम पूरा हुआ और उनकी कहानी सामने आई, तब समाज और सरकार दोनों ने उनके इस कार्य की सराहना की। लेकिन यह सराहना उस समय मिली, जब उन्होंने अपने काम को अंजाम तक पहुँचाया। दशरथ मांझी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा अकेले इस संघर्ष में बिताया। सरकार ने बाद में उनके प्रयासों को मान्यता दी और उन्हें सम्मानित किया गया, लेकिन दशरथ मांझी के जीवन के अधिकांश समय में उन्हें सरकारी सहायता नहीं मिली।

उनकी इस उपलब्धि ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में एक नया संदेश दिया। दशरथ मांझी का नाम आज भी उस व्यक्ति के रूप में लिया जाता है, जिसने अकेले ही अपने संकल्प और हिम्मत से असंभव को संभव बना दिया।

दशरथ मांझी की विरासत

दशरथ मांझी का जीवन और उनका कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कहानी ने सिनेमा, साहित्य, और लोककथाओं में अपनी जगह बनाई है। 2015 में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म “मांझी: द माउंटेन मैन” बनाई गई, जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने मुख्य भूमिका निभाई। इस फिल्म ने दशरथ मांझी की कहानी को व्यापक जनसमूह तक पहुँचाया और उनके संघर्ष को एक बार फिर से उजागर किया।

उनकी यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, यदि इरादा मजबूत हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। दशरथ मांझी ने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्य कर सकता है। उनका जीवन हमें यह भी सिखाता है कि असफलता से घबराने की बजाय हमें अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से बढ़ते रहना चाहिए।

दशरथ मांझी का जीवन एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो यह साबित करती है कि मानव शक्ति और संकल्प के सामने कोई भी बाधा टिक नहीं सकती। उनके द्वारा किए गए अद्वितीय कार्य ने न केवल गहलौर गाँव के निवासियों की जिंदगी को बदल दिया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि यदि एक व्यक्ति अपने समाज और देश के लिए कुछ करने का ठान ले, तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता।

इन्होंने अपने काम को 22 वर्षों(1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी का प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि इन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है और इन्होंने इस पहाड़ के पत्थर भी बेचे फिर भी इनका ये प्रयास सराहनीय है

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय(गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 78 साल की उम्र में, 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया। बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया

आज दशरथ मांझी के नाम पर कई संस्थाएँ और सड़कें बनाई गई हैं। उनकी कहानी को स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा ले सकें। दशरथ मांझी का जीवन और उनकी संघर्ष की कहानी हमेशा के लिए मानव इतिहास में दर्ज हो गई है, जो आने वाले समय में भी लोगों को प्रेरणा देती रहेगी।

माँझी ‘माउंटेन मैन’ के रूप में विख्यात हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ माँझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गाँव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।

 

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