“गौ सेवकों की सूचना पर फिर पकड़ी गई 35 मवेशियों से भरी 10 चक्का ट्रक….
धरसींवा-रायपुर-छत्तीसगढ़:- छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल नें एक नारा दिया था कि “छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरवा, घुरवा, बारी” किंतु स्थिति किसी से छिपी नहीं है प्रदेश भर में नरवा, गरवा का बुरा हाल है, जबकि प्रदेश सरकार गोधन न्याय और गोठान जैसी महत्वकांक्षी योजना में करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए किंतु गौमाता और गोठानो की स्थिति दयनीय है।
शासन की महत्वकांक्षी योजनाओं की धज्जियां उड़ानें वाले गौ-तस्कर लगातार प्रदेश भर में सक्रिय हैं।
आए दिन गौ तस्करी के मामले सामनें आते रहे हैं।
वर्तमान मामला प्रदेश के राजधानी रायपुर अंतर्गत धरसींवा क्षेत्र का है जहां गौ-सेवकों को मवेशी तस्करी की सूचना मिली जिस पर गौ-सेवकों नें धरसींवा हाईवे में दस चक्का ट्रक को पकड़ा, गौ-सेवकों की सतर्कता से तस्करी विफल हुई तथा वाहन में भरे 35 गौवंशो को तस्करों के चंगुल से मुक्त करा कर उन्हें सुरक्षित किया गया।
छतीसगढ़ प्रदेश बना गौ माफियाओं के अड्डा…
प्राप्त जानकारी के अनुसार गौ-सेवक मनोज हरि एंड टीम (बजरंग दल) द्वारा लगातार गौ-तस्करी में लिप्त बड़े-बड़े ट्रक, कंटेनर पकड़ कर कार्यवाही किया जा रहा है, इसी कड़ी में टीम को सूचना मिली थी कि मवेशियों से भरा ट्रक 10 जून की मध्य रात्रि जिला बिलासपुर से निकलकर नागपुर कत्लखानें जाएगी, तो वहीं गौ-रक्षकों के सूझबूझ से धरसींवा हाइवे पर उस ट्रक को पकड़नें पर सफलता मिली, ट्रक क्र. MH40 BL 2705 में 35 गौ-वंश मिले, सभी गौवंश को सुरक्षित किया गया, गौ-रक्षक मनोज जंघेल एवं नितेश सोनी नें कहा कि छतीसगढ़ प्रदेश गौ-माफियाओं का अड्डा बन गया है, सबसे बड़ी बात तो यह है कि छतीसगढ़ प्रदेश के बेमेतरा जिला से प्रतिदिन 05 गाड़ी निकलकर आती है, गौ-रक्षक अपनी जान पर खेलकर गाड़ी पकड़ कर पुलिस प्रशासन को सुपुर्द करती है। किंतु गौ-सेवकों का यह भी आरोप है कि प्रशासन इस तरह के मामलों पर मौन है, बड़े पैमानों में गौ-तस्करी चल रही है, कहीं न कहीं इन्हें शासन-प्रशासन का सहयोग मिलता है, साथ ही कहा कि पकड़ी गई ट्रक 10 चक्का वाहन से गौ-वंश निकालकर सुरक्षित किया गया।
गौ-रक्षक मनोज जंघेल, हरि साहू, नितेश सोनी, विकास वर्मा, गोल्डी शर्मा, आकाश यादव, राजा साहू, सहित टीम को 10 चक्का ट्रक क्र. MH40 BL 2705 को पकड़ने में सफलता मिली।
गौरतलब है कि गौ-तस्करी का अवैध कारोबार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है, मुखबिर तथा गौ-सेवकों की सूचना पर गौ-तस्करी के मामले में पुलिस की कार्यवाही आए दिन सुननें को मिलती है, गाहे-बगाहे की गई कार्यवाही में भी लीपापोती स्पष्ट नजर आता है, कभी गौ-माताओं को हांकनें वाले मजदूरों को आरोपी बनाया जाता है तो कभी वाहन चालक को आरोपी बना कर खानापूर्ति कर ली जाती है, जबकि असल माफिया पुलिस की पहुंच से बाहर रहते हैं, ऐसे में शासन द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर चलाई जानें वाली महत्वकांक्षी योजनाओं का पलीता लगता नजर आ रहा है।
बहरहाल गौ-तस्करी के मामलों को देखकर ऐसा महसूस होनें लगा है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश गौ-माफियाओं के लिए महफूज ठिकाना बन गया है, ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है, क्या प्रदेश सरकार की कथनी और करनी में फर्क है?
क्या प्रदेश के मुखिया के आदेश निर्देशों की नौकरशाहों को तनिक भी फिक्र नहीं?
आखिर किसके संरक्षण में गौ-माफियाओं के हौसले बुलंद हैं?
क्या गौ-तस्कर राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहे?
क्या कारण है कि गौ-तस्कर खुलेआम चैलेंज करते हैं, और कहते हैं कि कोई माई का लाल नहीं रोक सकता गौ तस्करी का अवैध कारोबार को?