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आलेख/विचार

डॉ. मोनिका ठक्कर ने महाराष्ट्र की 57 बोलियों को शामिल करने का प्रयास किया

सुनील गायकवाड़ कहा कि यह बोलियों का गौरवशाली ग्रंथ है।

नासिक-ब्यूरो (श्री यादव माली- ब्यूरो चिफ) : डॉ. मोनिका ठक्कर ने महाराष्ट्र की 57 बोलियों को शामिल करने का प्रयास किया है, जिसमें चालीसगाँव जिले के आदिवासी लेखक सुनील गायकवाड़ की आदिवासी भिलाऊ बोली, महाराष्ट्र की आदिवासी बोली और महाराष्ट्र की आदिवासी बोली शामिल है।

इस पुस्तक में मृत अवस्था गाँवों, जंगलों, शहरों में बोली जाने वाली अनेक बोलियाँ हैं। इनमें आदिवासी बोलियां सबसे अधिक हैं। समय के साथ-साथ ये बोलियां लुप्त होती जा रही हैं। एक भाषा बनने में हजारों साल लग जाते हैं। लेकिन इसे नष्ट करने के लिए तीन पीढ़ियां काफी हैं। कुछ चुनिंदा शोधकर्ता उस बोली को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। डॉ. मोनिका ठक्कर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ” माझी बोली” में निम्नलिखित बोलियाँ दी गई हैं, जबकि उनकी कुछ चुनी हुई बोलियों का अन्य बोलियों से अनुवाद बोलियों द्वारा किया गया है।

इस प्रकार सुनील गायकवाड-भिलाऊ बोली (वाघुर), मनोज भोरे-कुर्मोदे जोशी, वाकोड़े (कोल्डंडा) बोली, विदेशी राजपूत बोली – भावेश इंदल राजपूत (कार्टून), अफान बोली तड़वी बोली – रमजान तड़वी उजाड़ बस्ती) भीली बोली / भीलोरी कोठाली बोली – कांतिलाल पड़वी (खाटू), देहवाली बोली भीली बोली – विश्रमवलवी (कमाली), अंध बोली – डॉ. सखाराम दखोरे (सरोज) मावल बोली – डॉ. कृष्ण भावरी (तिपवन) तावड़ी बोली – प्रधान विश्वास पडोलसे (धोतरजोड़ा), त्रबकेशोरी महादेव कोली बोली -संजय डोबडे (बावलभटुरिया) बंजारा बोली -एकनाथ गोफने (चाचा डोकनरा) महारौ बोली-राकेश खैरनार (चंद्रमोई) बगलानी बोली-एस.के.पाटिल (सपन), चमारी मोची बोली – डॉ वाल्मीक अहिरे (बुब्बुदा) मठवाड़ी बोली – सुमित्रा वसावे (वेणु) मनकारी बोली – विठ्ठल नीरवारे (कोशिद) लोहारी बोली – प्रो रमेश राठौड़ (बैलगाडु) जालना बोली – प्रभाकर शेलके (उदास उरुस), कोंकण आदिवासी बोली डॉक्टर मधुचंद्र भुसरे (राम मामा), डांगानी बोली – रोहिदास डागले, दांगी बोली – भावेश बागुल (पोशी) कातकरी बोली – सुभाष सोनकंबले -(दोर ने गाय ही), चांदवाड़ी बोली- बाबूराव पाटिल (तोड़नी) पारधी बोली- प्रवीण पवार (दयाई) पावरा बोली- प्रा-भामरे, संतोष पावरा (एकलव्य धनुष्य) इन बोली कथाकारों और कुछ पुराने कहानीकारों से सीधे संपर्क करके उनकी कहानियाँ स्वयं टाइप कर डॉ. मोनिका ठक्कर को ई-मेल द्वारा सौंपी गयीं।

उन सभी कहानियों को लोकायत प्रकाशन “माझी बोली माझी कथा”  द्वारा एक पुस्तक के रूप में संकलित कर राज्यपाल के हाथों डॉ. मोनिका ठक्कर द्वारा प्रकाशित किया गया। सुनील गायकवाड़ कहा कि यह बोलियों का गौरवशाली ग्रंथ है।उन्होंने उनसे संवाद करते हुए कहा।

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