शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था।
उन्हें बचपन से ही संगीत का शौक था, और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत छोटे मंचों से की थी। धीरे-धीरे उनकी आवाज़ और गाने लोगों के दिलों को छूने लगे, और उन्होंने बिहार और उत्तर भारत के लोक संगीत में एक नई जान फूंक दी। उनकी गहरी और भावपूर्ण आवाज ने लोकगीतों को एक नई ऊंचाई दी, जो उनकी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। उनके द्वारा गाए गए लोकगीतों में “पार करब नैया,” “कईसन बितइली रतिया,” और छठ गीत विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें पद्म श्री और पद्म भूषण भी शामिल हैं। उनकी आवाज में एक अपनापन था, जो आम लोगों के दिलों तक आसानी से पहुंच जाती थी। उनकी कला में बसी हुई सादगी और समर्पण ने उन्हें लोक संगीत का एक जीवंत प्रतीक बना दिया।
शारदा सिन्हा के निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया है। उनकी कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा। शारदा सिन्हा का योगदान सदैव याद किया जाएगा, और उनके गाए गीत आने वाली पीढ़ियों तक उनकी यादों को जीवित रखेंगे।